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________________ प्रतिबोध एवं गोत्र-स्थापन:-जिनवल्लभ ने प्रामानुप्राम विहार कर जन-जागृति का काम किया। आम जनता पर तो उनका प्रभुत्व था ही, राजाओं पर भी कम नहीं था। प्राप्त प्रमाणों के अनुसार धारानगरी का नरेश नरवर्म जिनवल्लम की विद्वत् प्रतिभा से काफी प्रभावित था। उसने जिनवल्लभ के उपदेश से धर्म कार्य में लाखों रुपये व्यय किये। प्रसिद्ध नरेश महाराज सिद्धराज जयसिंह भी जिनवल्लम के प्रति अनुरागी था। आभुदुर्ग के राजा आनड़देव और कंकरावता के राव भीमसिंह पड़िहार ने इनके उपदेशों से प्रभावित होकर ही जैनधर्म में दीक्षा ली। - जिनवल्लभसूरि ने जो गोत्र स्थापित किये, उनमें कतिपय इस प्रकार हैं-धाड़ीवाहा, कोठारी, टॉटिया, लालाणी, बांठिया, ब्रह मेचा, मल्लावत, हरखावत, साहजी, भणसाली, खरभणसाली, चंडालिया, कच्छवा, रायभूरा, पुगलिया, संघवी, नवलखा, पल्लीवाल, फसला, निनवाणा, कांकरिया आदि । - इनमें डीडा नामक खीची राजपूत धाड़ मारने का धन्धा करता था, किन्तु गुरुदेव के उपदेश से उसने धाड़ मारना बन्द कर दिया । 'धाड़ीवाहा' गोत्र का सम्बन्ध इसी से है। राजा लालसिंह से लालाणी, बंठदेव से बांठिया, ब्रह्मदेव से बह मेचा, मल्ल से मल्लावत, हरखचंद से हरखावत आदि गोत्र प्रकट हुए। राजा आनड़देव ने भाण्डशाला में सम्यक्त्व ग्रहण किया था, अतः उनका गोत्र भणसाली स्थापित हुआ। राव भीमसिंह पड़िहार ने जिनवल्लभसूरि द्वारा अभिमन्त्रित कंकड़ शत्रुपक्ष पर फेंके, निससे शत्रुओं के शस्त्र कुंठित हो गये। कंकड़ द्वारा विजय प्राप्त हो माने के कारण राव के वंशज कांकरिया कहलाये। शिष्य-संतति:-जिनवल्लभसूरि के कितने शिष्य थे इसकी निश्चित संख्या प्राप्त नहीं है। प्राप्त उल्लेखों के अनुसार तो दो-तीन १६१ :
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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