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________________ शिष्य थे। वि० सं० ११४० में जिनवल्लम जब चित्रकूट पहुंचे थे उस समय या तो इनके दो शिष्य थे या उनके साथ में केवल दो शिष्य थे । सुमति गणि ने “आत्म तृतीय” के रूप में इसका संकेत दिया है कि वे तीन थे अर्थात् दो शिष्य और वे स्वयं । ____उन दो शिष्यों में एक जिनशेखर थे और दूसरे शिष्य सम्भवतः गणि रामदेव थे। गणि रामदेव जिनवल्लभ के ही शिष्य थे, ऐसा उल्लेख स्वयं रामदेव ने "षडशीति टिप्पणक" में "तस्सिस्सलवेणं" के रूप में किया है। __ साहित्य-सेवा :-जिनवल्लभ का साहित्य-सर्जन विपुल है। यद्यपि प्राच्य विद्वानों के अनुसार उन्होंने शताधिक रचनाएँ लिखी।' किन्तु वर्तमान में उनकी अधोलिखित कृतियां उपलब्ध होती हैं(क) प्राकृतभाषा में निबद्ध कृतियाँ : १. सूक्ष्मार्थ विचारसारोद्धार सार्द्धशतक प्रकरण, कर्म-सिद्धान्त, - पद्य संख्या १५२ २. आगमिकवस्तुविचार सार षडशीतिप्रकरण, कर्मसिद्धान्त, पद्य संख्या ८६ ३. पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आचार-सिद्धान्त, पद्य संख्या १०३ ४. सर्वजीवशरीरावगाहना स्तव, कर्म सिद्धान्त, पद्य संख्या ८ ५. श्रावकव्रत कुलक, आचार-पक्ष, पद्य संख्या २८ ६. पौषधविधि प्रकरण, विधि, गद्य परमद्यापिभगवतामवदातचरितनिधीनां श्रीमरुकोट्टसप्तवर्षप्रमितकृतनिवासपरिशीलितसमस्तागमानां समग्रगच्छा हतसूक्ष्मार्थ सिद्धान्तविचारसारषडशीति-सार्द्धशतकाख्य-कर्म ग्रन्थ - पिण्डविशुद्धि-पौषधविधि-प्रतिक्रमणसामाचारी-संघपट्टक-धर्मशिक्षा-द्वादशकुलक-रूपप्रकरण - प्रश्नोत्तरशतकशृङ्गारशतक - नानाप्रकारविचित्रचित्रकाव्यशतसंख्यस्तुतिस्तोत्रादिरूपकीर्तिपताका सकलं महीमण्डलं मण्डयन्ती विद्वजनमनांसि प्रमोदयति । -सुमति गणि, गणधरसार्द्धशतक वृत्ति १६२
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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