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________________ कितनी उदारता थी उनकी ! जिनको भी उन्होंने जैनत्व में परिवर्तित किया, वहाँ उन्हें समग्र जैनत्व से जोड़ा है, न कि मात्र अपने गच्छ से । यह खरतरगच्छ की उदारवादिता का अनुपम उदाहरण है । इसी प्रकार अन्यान्य सन्दर्भों' में भी खरतरगच्छ की नीति सदैव असंकीर्ण और व्यापक रही । 'राजा नो ददते सौख्यम्' इस वाक्य के आठ अक्षरों को लेकर आठ लाख अर्थों के परिज्ञापक ग्रन्थ-रत्न 'अष्टलक्षी' महाकाव्य के निर्माण करने वाले महान् विद्वान् समयसुन्दर के समकक्ष कोई और लेखक न केवल भारत का वरन् विश्व का वाङ्गमय भी दे सका है ! विस्तार से पाठक इतिहास में पढ़ेंगे ही, केवल इतना सा इंगित करना पर्याप्त होगा कि साहित्य, दर्शन, न्याय, ज्योतिष, आयुर्वेद, गणित प्रभृति अनेक विषयों पर खरतरगच्छ के आचार्यों, मुनियों और मनीषियों ने सहस्रोंसहस्रों ग्रंथों की रचना की । ज्ञान की इस उदग्र आराधना के साथ-साथ वे परम क्रियानिष्ठ रहे। ज्ञान और क्रिया के समन्वय के क्रान्ति घोष को लेकर इस गच्छ का उद्भव हुआ । 'ज्ञात सत्य का आचरण और आचरित सत्य का ज्ञान' यही इस गच्छ का प्रमुख उद्घोष था । वह उद्घोष कभी मन्द नहीं पड़ा । इन्हीं सब बातों का लेखा-जोखा इतिहास का विषय है। 1 प्रस्तुत ग्रन्थ इस आम्नाय के इतिहास का प्रथम खण्ड है, जिसमें खरतर - गच्छ के आदिकाल का विवेचन है । मैंने खरतरगच्छ को अभ्युदय, विकास और अभिवर्धन की दृष्टि से तीन भागों में विभक्त किया है-आदिकाल, मध्यकाल और वर्तमान काल । ग्यारहवीं शताब्दी से तेरहवीं शताब्दी तक का समय मैंने आदिकाल में परिगृहीत किया है। देश की तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थिति, जैन धर्म का प्रचलित रूप, क्रान्ति की आवश्यकता इत्यादि की पृष्ठभूमि पर उद्भूत खरतरगच्छ के रूप में आध्यात्मिक क्रान्ति अभियान का लेखा-जोखा, इन तीन शताब्दियों के अन्तर्गत उत्तरोत्तर बढ़ते प्रगति-चरण, सर्जित ठोस कार्य इत्यादि का विवरण प्रस्तुत करने का इस ग्रन्थ में प्रयास रहा है । लेखन में दृष्टिकोण नितान्त ऐतिहासिक रहा है। जिन-जिन विषयों में ठोस प्रमाण प्रस्तुत हुए हैं, उन्हीं को प्रामाणिक रूप में उपस्थित करने का मेरा उपक्रम रहा है। जनश्रुतियों या किंवदन्तियों को उनके अपने रूप से अधिक महत्त्व नहीं दिया गया है, ऐतिहासिकता के ढाँचे में उन्हें नहीं ढाला है । निश्चय ही खरतरगच्छ का आदिकाल न केवल इस गच्छ के वरन XII
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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