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________________ दसवीं शताब्दी की उत्तरवर्ती आहेत - परम्परा के ज्ञान एवं साधना की दृष्टि से स्वर्णिम काल कहा जाये तो कोई अतिरंजन नहीं होगा । हमें आशा ही नहीं, अपितु पूरी आस्था है कि खरतरगच्छ के आदिकालीन इतिहास के घटनाक्रम जनमानस में श्रुत-प्रधान और संयम प्रधान धर्म की प्रेरणा जगायेंगे । खरतरगच्छ का मध्यकालीन और वर्तमान कालीन इतिहास भी यथासमय प्रकाश में आयेंगे, ऐसी आशा है । प्रस्तुत इतिहास - प्रबन्ध को मूर्त रूप देने में अनेक लोग निमित्त बने । आचार्यप्रवर श्री जिनकान्तिसागरसूरीश्वरजी के आशीर्वाद ने दीप बनकर मेरे कार्य-पथ को प्रशस्त किया । गणिवर श्री महिमाप्रभसागरजी एवं अ० भा० श्री जैन श्वे० खरतरगच्छ महासंघ इतिहास-लेखन के प्रेरणा-स्रोत रहे । श्री भँवरलालजी नाहटा, दौलतसिंहजी जैन, मोहनचन्दजी ढढा, आशकरणजी गुलेछा, ज्ञानचन्दजी लुणावत, राजेन्द्रकुमारजी श्रीमाल आदि महासंघ - सदस्यों के आग्रह ने व्यस्तताओं के बावजूद मुझसे इसकी सम्पूर्ति करवा ली। प्रकाश कुमारजी दफ्तरी का तो लेखन से प्रकाशन तक सार्वभौम सहयोग मिला । बन्धुवर श्री ललितप्रभसागरजी का प्रस्तुत लेखन कार्य में अग्रयोग रहा। इतिहासविद् श्री भँवरलालजी नाहटा एवं कलम के सिपाही श्री गणेश ललवानी ने इस ग्रंथ का पुनरावलोकन एवं मुद्रण-शोधन किया । मैं उन सभी के प्रति सद्भावना व्यक्त करता हूँ, जिनकी इस लेखनप्रकाशन में प्रत्याक्षाप्रत्यक्ष सक्रियता रही । प्रणत हूँ उन इतिहास-पुरुषों के प्रति, जो इस ग्रन्थ के नायक हैं । १ जनवरी १६० XIII —चन्द्रप्रभ
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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