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________________ प्रस्तुत पद्य की जिनवल्लम ने सविस्तार चर्चा की, जिसमें ब्राह्मणों की आलोचना हुई। ब्राह्मण-पण्डित इससे कुपित हुए और सोचा कि जैसे-तैसे उन्हें विवाद में परास्त करें। किन्तु जिनवल्लभ से टक्कर लेना कोई हंसी-खेल नहीं था। उन्होंने प्रधान ब्राह्मण पण्डित को भोजपत्र में एक वृत्त लिखकर भेजामर्यादाभङ्गभीतेरमृतमयतया धैर्यगाम्भीर्य योगात् । न क्षुभ्यन्ते व तापन्नियमितसलिलाः सर्वदेते समुद्राः॥ आहो ! क्षोभं ब्रजेयुः क्वचिदपि समये दैवयोगात् तदानीं । न क्षोणी नाद्रिचक्रं न च रविशशिनौ सर्वमेकार्णवं स्यात् ।। अर्थात् अमृत जैसे स्वच्छ नियमित जल से परिपूर्ण सागर धीरता, गम्भीरता और मर्यादाभङ्ग के डर से क्षोभ को प्राप्त नहीं होते हैं। यदि दैव योग से क्षोभ उत्पन्न हो जाये तो पृथ्वी, पर्वत, सूर्य, चन्द्रइन सबका तो पता भी न चले। सारा जगत् जलमय ही हो जाये। यह पद्य पढ़कर प्रधान ब्राह्मण पण्डित ने अन्य पण्डितों को समझा कर शान्त कर दिया। जिनवल्लभ की एक अन्य घटना का उल्लेख भी अनेक परवर्ती प्रन्थों में उपलब्ध है। घटना यह है कि धारानगरी में राजा नरवर्म की राज सभा में परदेश से दो पण्डित आये और उन्होंने पण्डितों के सम्मुख एक समस्या पद प्रस्तुत किया कण्ठे कुठारः कमठे ठकारः। राजसभा के अनेक पण्डितों ने इस समस्या की पूर्ति की किन्तु उन दोनों पण्डितों को आत्म-तोष नहीं हुआ। तब उपस्थित पण्डितों में से किसी ने कहा कि चित्रकूट (चित्तौड़) में जिनवल्लभ नामक श्वेताम्बर साधु हैं, वे सर्व विद्याओं में निपुण हैं। उनके द्वारा इस समस्या की पूर्ति करवानी चाहिये। नरवर्म ने साधारण नामक श्रेष्ठिके पास १५७
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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