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________________ उनके पास आया और कहा कि मैं बिना गणना किये ही दो-तीन लग्नों का प्रतिपादन कर सकता हूँ क्या आप भी ऐसा करने में सक्षम हैं ? जिनवल्लम ने कहा कि थोड़ा सा सक्षम हूँ। बताइये कितने लग्नों का प्ररूपण करूं-दस या बीस ? इसी के साथ जिनवल्लभ ने लगातार विविध लग्नों का निरूपण किया। अन्त में जिनवल्लम बोले-भूदेव! देखें वह आकाश में जो दो हाथ का अभ्रखण्ड दृष्टिगोचर हो रहा है, उससे कितनी वर्षा होगी? विप्र को निरुत्तर देख कर जिनवल्लभ ने कहा वह दो घड़ी के भीतर विराट रूप धारण कर अति जल वृष्टि करेगा। सत्यतः ऐसा ही हुआ। तदर्थ जिनवल्लमगणि कीर्तिमान हुए। आश्विन कृष्ण त्रयोदशी के दिन जिनवल्लभ ने श्रावक संघ से कहा कि आज हमें भगवान महावीर का छद्रा कल्याणक मनाना है, तो वह चकित हुआ। क्योंकि उस समय संघ च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य और मोक्ष-इन पांच अवस्थाओं को ही कल्याणक मानता था, किन्तु जब उसे आगमिक प्रमाण देकर समझाया गया तो वह गर्भापहार नामक छ8 कल्याणक को मानने के लिए सहर्ष तैयार हो गया। जिनवल्लभ चतुर्विध संघ के साथ चैत्यालय दर्शन-वन्दनार्थ गए, किन्तु चैत्यालय की एक आर्या ने चैत्यद्वार यह कहकर बन्द कर दिया कि भगवान महावीर का गर्मापहार का उत्सव किसी ने नहीं मनाया इसलिए मैं यह उत्सव इस मन्दिर में नहीं मनाने दूंगी। अन्त में एक श्रावक के गृह में ही भगवान महावीर की प्रतिमा स्थापित कर वह उत्सव सम्पन्न किया गया। इस घटना से सुविहित श्रावक वर्ग ने स्वतन्त्र मन्दिर निर्माण करने की योजना बनाई और तदनुसार चित्तौड़ पर्वत पर दो मन्दिरों का निर्माण हुआ। एक मन्दिर पर्वत पर और दूसरा 'पर्वत की तलहटि में। जिसकी प्रतिष्ठा जिनवल्लभ गणि ने करवाई। चित्रकूटीय वीर चैत्य प्रशस्ति में जिनवल्लम गणि ने इन नव
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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