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________________ जनवल्लभ ने रुकने के लिए भावकों से स्थान याचना की तो उन्होंने कहा कि यहाँ यह चण्डिका मठ है । वहाँ यदि ठहरना चाहें तो ठहर सकते हैं । जिनवल्लभ उनके दुष्मिप्राय को समझ गये, परन्तु यह विचार कर कि देव, गुरु और धर्म की कृपा से सब अनुकूल होगा, उसी मठ में ठहर गये । चण्डिका देवी जिनवल्लभ के आत्मबल, ज्ञानबल और योगबल से अत्यधिक प्रभावित हुई और जिनवल्लभ की सिद्धिदात्री बनी । इससे श्रावकवर्ग चकित रह गया। क्योंकि उन्होंने तो समझा था कि चण्डिका के क्रोध से जिनवल्लभ भयभीत हो जायेंगे । ? जिनवल्लभ की विद्वता से प्रभावित होकर अनेक पण्डित एवं मनीषीजन उनके पास आने लगे। जिनवल्लभ के पाण्डित्य / चारित्र से न केवल ब्राह्मण आदि आकर्षित हुए, अपितु चैत्यवास समर्थक श्रावक भी आकर्षित हुए। सड्ढक, साधारण, सुमति, पल्हक, वीरक, मानदेव, बन्धेक, सोमिलक, वीरदेव प्रभृति भावकों ने जिनवल्लभ को अपना सद्गुरु स्वीकार किया । जिनवल्लभ के प्रखर ज्योतिष ज्ञान ने अनेक लोगों को सहज प्रभावित किया। एक बार साधारण नामक श्रावक ने जिनवल्लभसूरि के पास बीस हजार रुपयों का परिमाण व्रत अंगीकार करना चाहा । परन्तु जिनवल्लभ ने ज्योतिषाधार पर उसके अनागत जीवन को विशेष वैभवपूर्ण जानकर उसे कहा कि यह परिमाण तो अत्यन्त अल्प है और अधिक बढ़ाओ। धर्मनिष्ठ किन्तु निर्धन श्रावक जिनवल्लभ के वक्तव्य पर आश्चर्यित हुआ । अन्ततः उसने एक लाख का सर्वपरिग्रह निश्चित किया । कालान्तर में साधारण एक लखपति बना । इस तरह जिनवल्लभ की भविष्यवाणी सार्थक सिद्ध हुई, जिससे चित्रकूटस्थ श्रावक प्रभावित हुए । जब जिनवल्लभ के ज्योतिषज्ञान की प्रसिद्धि सर्वत्र फैलने लगी तो एक ज्योतिष पण्डित १५२
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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