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________________ पहला अधिकार है-धर्माधिकारी सामान्य-गुण-वर्णन और दूसरा अधिकार है-धर्माधिकारी विशेष गुण वर्णन। पहले अधिकार में है सम्यक्त्व पटल की तथा २४ सामान्य गुणों की कुल ३३ कथाएँ हैं। दूसरे अधिकार में १७ विशेष गुणों पर १७ कथाएं दी गई हैं। ग्रन्थ प्राकृत-पद्यबद्ध है, कहीं-कहीं प्राकृत-गद्य, संस्कृत और अपभ्रंश के शब्द भी समाविष्ट किये गये हैं। ग्रन्थ का परिमाण १२३०० श्लोकप्रमाण है। इसकी रचना वि० सं० ११५८ में भरुकच्छ (भड़ौच) नगर के मुनिसुव्रत चैत्यालय में उन्होंने समाप्त की थी। 'संवेगरंगशाला' को 'आराधना रत्न' भी कहा जाता है। इसकी हस्तलिखित मूल प्रति अभी तक प्राप्त नहीं हुई है। 'पार्श्वनाथ चरित्र' में प्राप्त उल्लेख के अनुसार इसकी रचना सं० ११२५ में हुई। पार्श्वनाथ चरित सं० ११६८ में विरचित है। इसका रचना स्थल है आमदत्त मन्दिर, भरुच्च । 'संवेगरंगशाला' ग्रन्थ को छोड़कर शेष सभी रचनाएँ मुनि पुण्यविजय जी के सम्पादन में आत्मानन्द जैन ग्रन्थमाला द्वारा सन् १९४४ में प्रकाशित हुई हैं। इन पर विस्तृत शोध-जानकारी हेतु द्रष्टव्य है डॉ. जगदीशचन्द्र जैन का प्राकृत साहित्य का इतिहास। अर्हन्नीति-संयोजक आचार्य जिनवल्लभसूरि ___ आचार्य जिनवल्लभसूरि आचार्य अभयदेवसरि के पट्टधर हुए। जिनवल्लभसूरि महाकवि, चारित्रनिष्ठ एवं क्रान्तिकारी आचार्य थे। इन्होंने जहां एक ओर विधि-मार्ग के प्रचार में प्रबल पुरुषार्थ किया, वहीं दूसरी ओर अनेक विशिष्ट ग्रन्थों का प्रणयन कर भारतीय साहित्य के गौरव को द्विगुणित किया। महोपाध्याय विनयसागर ने इनके सम्बन्ध में किये गये विस्तृत शोध के आधार पर लिखा है कि १ वसुबाण रुद्दसंखे ११५८ वच्चंते विक्कमाणो कालम्मि । लिहिओ पढमम्मि य पोत्थयम्मि गणिअमलचन्देण ।। -कथारत्न कोश, प्रशस्ति, ६ १४४
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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