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सेठ शिष्ट और वीर के नाम उल्लेखनीय हैं। आचार्य देवभद्र ने जिनवल्लभ और सोमचन्द्र को आचार्य पदारूढ़ किया था। चन्द्रगच्छ के आचार्य देवेन्द्रसूरि के शिष्य श्री चन्द्रसूरि ने 'सनत्कुमार चरित' के प्रारम्भ में देवभद्रसूरि एवं अन्य आचार्यों की कृतियों का स्मरण कर उनकी गुण स्तुति की है।
साहित्य :-आचार्य देवभद्र ने दार्शनिक एवं भक्तिपरक साहित्य की रचना की थी। जिनरत्नकोश एवं मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि अष्टम शताब्दी स्मृति ग्रन्थान्त में दी गई सूची के अनुसार आपके निम्न प्रन्थ प्राप्त हो चुके हैं
१. महावीर चरित्र, सं० ११३६, ज्येष्ठ सुदि ३।
२. संवेगरंगशाला जो मात्र जिनचन्द्रसूरि कृत संवेगरंगशाला का परिशोधन है। शोधन काल सं० ११२५ है ।
३. पार्श्वनाथ चरित, रचना काल वि० सं० ११६८, रचना स्थल आमदत्त मन्दिर, भरूच ।।
४. कथारनकोश, रचना काल सं० ११५८, रचना स्थल भरौंञ्च । ५. प्रमाण-प्रकाश। ६: अनन्तनाथ स्तोत्र। ७. स्तम्भन पार्श्वनाथ स्तोत्र । ८. वीतराग स्तव।
'महावीर चरियं' भगवान महावीर के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालने वाली, प्राकृत में द्वितीय रचना है। यह प्रन्थ ३००० श्लोक परिमित है। इसमें कुल २३८५ पद्य है। इसकी रचना सेठ शिष्ट और वीर की प्रार्थना पर वि० सं० ११३६ में ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया, सोमवार को पूर्ण हुई थी।
देवभद्र का 'कथारत्नकोश' प्रसिद्ध है। इसे कहारयणकोष भी कहा जाता है। इसमें ५० कथाएँ हैं, जो दो वृहद् अधिकारों में विभक्त हैं।
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