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दिव्य विभूति आचार्य देवभद्रसूरि
आचार्य देवभद्रसूरि सौम्य स्वभावी, वैराग्य के मूर्त रूप और विशद मति सम्पन्न थे । 'कथारत्नकोष' और 'महावीर चरियं' जैसे विशिष्ट ग्रन्थों की रचना के कारण साहित्य - जगत् में उनका नाम समाहत है | युगप्रधानाचार्य गुर्वावली में आचार्य देवभद्रसूरि का समावेश किया गया है। उनके अनुसार ये खरतरगच्छीय थे ।
जीवन-वृत्त :- आचार्य देवभद्रसूरि के गृहस्थ जीवन के बारे में कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो पाई है। रचनाओं में दी गई प्रशस्तियों के अनुसार आचार्य देवभद्र के गुरु का नाम वांचक सुमति था । आचार्य पद पर आसीन होने से पूर्व इनका नाम गुणचन्द्र था । इन्हें आचार्य पद से पहले गणि पद भी दिया गया था । 'महावीर चरियं' ग्रन्थ में इन्होंने अपना परिचय इसी नाम से करवाया है । इन्हें आचार्य अभयदेवसूरि जैसे विद्वान् आचार्य ने अध्ययन कराया था और अभयदेव की इन पर कृपा एवं स्नेह था । जिनवल्लभसूरि कृत चित्रकूट - प्रशस्ति में इस तथ्य को उजागर किया गया है ।
गणि गुणचन्द्र को आचार्य प्रसन्नचन्द्रसूरि ने आचार्य पद प्रदान किया था और उस समय उनका नामकरण देवभद्र हुआ । 'संवेगरंगशाला' प्रन्थ- प्रशस्ति के अनुसार देवभद्रसूरि और प्रसन्नचन्द्रसूरि का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध था और दोनों एक-दूसरे के प्रति आत्मीयता रखते थे ।' देवभद्र ने स्वयं को प्रसन्नचन्द्रसूरि का सेवक स्वीकार किया है। इनके श्रावक शिष्यों में छत्रावली (छत्राल) निवासी
१ तद्विनेय श्री प्रसन्नचन्द्रसूरि समभ्यर्थितेन गुणचन्द्र गणिना ।
२ (क) तस्सेवगेहिं – कथारत्नकोश, प्रशस्ति (ख) पयपउम सेवगेहिं - पार्श्वनाथ, प्रशस्ति
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- संवेगरंगशाला, पुष्पिका