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१२. पंचाशक वृत्ति :-वि० सं० १९२४ में घोलका में लिखित यह कृति 'पंचाशक' पर एक सुन्दर व्याख्या है। इसमें १६ पंचाशक हैं एवं प्रत्येक विषय के लिए ५०-५० पद्य हैं। ग्रन्थ-परिमाण ७४८० श्लोक है।
१३. आराधनाकुलक:-यह रचना ८५ पद्यों में है। इसका रचना-स्थल तथा रचनाकाल ज्ञात नहीं है।
१४. जयतिहुअण स्तोत्र :-आचार्य अभयदेव की यह एक प्रसिद्ध रचना है। पट्टावलियों के अनुसार इसी स्तोत्र के प्रभाव से स्तम्भनकपुर ग्राम के निकट सेढ़िका नदी के पास पार्श्वनाथ की प्रतिमा प्रकट हुई थी। खरतरगच्छ में सान्ध्य-प्रतिक्रमण के समय इस स्तोत्र का नियमित पठन होता है । वृद्धाचार्य प्रबन्धावली में प्राप्त प्रमाण के अनुसार यह परम्परा काफी प्राचीन है ।'
१५. प्रज्ञापनातृतीय पद संग्रहणी :-यह एक संग्रह-कृति है, जो जैन महाराष्ट्री भाषा के १३३ पद्यों में है। इसमें संग्रहकर्ता ने प्रज्ञापनासूत्र के ३६ पदों में से 'अल्पबहुत्व' नामधेयक तृतीय पद को लक्ष्य में रखकर जीवों का २७ 'द्वारों' द्वारा अल्पबहुत्व दर्शाया है। यह ग्रन्थ १३३२ श्लोक-प्रमाण है।
इस पर वि० सं० १४७१ में आचार्य कुलमण्डनसूरि ने अवचूर्णि लिखी थी और वि० सं० १७८४. में जीवविजय ने बालावबोध लिखा था।
आचार्य अभयदेव की अन्य कृतियां इस प्रकार हैं१६. सप्ततिका भाष्य, भाष्य परिमाण ११२ श्लोक ।
१ खरतरगच्छे 'जयतिहुअण' नमोकार विणा पडिक्कमणं न लब्भइ ।
-वृद्धाचार्य प्रबन्धावली, ३ २ जैन आत्मानन्द सभा, भावनगर, वि.सं.१९७४
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