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________________ ९. विपाकवृत्ति :- प्रस्तुत वृत्ति' में भी आचार्य ने अन्य वृत्तियों में अपनायी गयी शब्दार्थ शैली का अनुगमन किया है। उन्होंने इसमें परिभाषिक शब्दों का संतुलित अर्थ प्रस्तुत किया है। 1 इसका संशोधन द्रोणाचार्य ने अणहिलपुर पाटण नगर में किया था । वृत्ति का ग्रन्थमान ३१२५ पद्य - परिमाण बताया गया है 1 १०. औपपातिक वृत्ति :- यह वृत्ति भी शब्दार्थ प्रधान है । इसमें आचार्य ने जिन शताधिक सांस्कृतिक एवं प्रशासन विषयक शब्दों की व्याख्या की है, वह विशेष महत्त्वपूर्ण है । द्रोणाचार्य के सहयोग से आचार्य ने अणहिलपाटक नगर में इसे पूर्ण किया । इसका ग्रन्थमान ३१२५ श्लोक परिमाण बताया है । 1 ११. पंचनियंठी (पंच निर्ग्रन्थी) :- यह कृति जैन महाराष्ट्री में १०७ पद्यों में निबद्ध है । इसका दूसरा नाम 'पंचनिर्ग्रन्थी विचारसंग्रहणी' है । इसका प्रन्थन 'विवाहपष्णत्ति' के आधार पर हुआ है इसमें पुलाक, बकुश आदि निर्ग्रन्थों के पाँच भेदों का प्रतिपादन हुआ है । इस कृति पर विरचित एक अवचूरि भी प्राप्त होती है, जिसका कर्त्ता अज्ञात है । यह अवचूरि जैन आत्मानन्द सभा से प्रकाशित हुई है । रायबहादुर धनपतसिंह, कलकत्ता, सन् १८७६ (ख) आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२० (ग) मुक्तिकमल जैन मोहनमाला, बड़ौदा, सन् १९२० (घ) गुर्जर ग्रन्थ रत्न कार्यालय, अहमदाबाद, सन् १६३५ (मूल, आंग्लानुवाद, टिप्पण सहित) २ आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १६१६ १ ३ ४ अणहिलपाटकनगरे पण्डितगुणेन गुणवत्प्रियेण श्रीमद्रोणाख्यसूरिमुख्येन । संशोधिता चेयम् ॥ - औपपाठिकवृत्ति, प्रशस्ति ३, पृष्ठ ११६ जैन आत्मानन्द सभा, वि० सं० १९७४ १३६
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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