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________________ प्रस्तुत वृत्ति का रचना-काल एवं रचना-स्थल अज्ञात है। . ६. अन्तकृद्दशावृत्ति :-यह वृत्ति' मी - मूल सूत्रस्पर्शी एवं शब्दार्थप्रधान है। जिन पदों की व्याख्या आचार्य ज्ञाताधर्मकथा में कर चुके हैं, उनकी पुनरावृत्ति इसमें नहीं की गई है। वृत्ति के अन्त में आचार्य लिखते हैं : यदिह न व्याख्यातं तज्ज्ञाताधर्मकथा विवरणादवसेयम्-जिसका यहाँ व्याख्यान न हुआ हो, वह ज्ञाताधर्मकथा के विवरण से जानें। वृत्ति का प्रन्थमान ८६ श्लोक-परिमाण है। रचना स्थल एवं रचनाकाल उल्लिखित नहीं है। ७. अनुत्तरौपपातिक दशावृत्ति :-प्रस्तुत वृत्ति' 'अनुत्तरौपपातिक दशा' सूत्र पर एक संक्षिप्त व्याख्या है। अभयदेव के टीकासाहित्य में यह सर्वाधिक लघु टीका है। इसका प्रन्थमान मात्र १०० श्लोक प्रमाण है। ८. प्रश्नव्याकरणवृत्ति:-प्रस्तुत व्याख्यामूलक ग्रन्थ प्रश्नव्याकरण पर लिखा गया एक शब्दार्थ प्रधान विवेचन है। आचार्य ने प्रन्थ की दुरुहता को स्वीकार किया है। इसमें आस्रवपंचक एवं संवरपंचक का प्रतिपादन हुआ है। इसका प्रन्थमान ४६३० पद्य परिमाण है। द्रोणाचार्य ने इस वृत्ति का संशोधन-सम्पादन किया था। १ (क) राय बहादुर धनपतसिंह, कलकत्ता, सन् १८७५. (ख) आगमोदय समिति, सूरत, सन् १९२० (ग) गूर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय, अहमदावाद, सन् १९३२ २ वही सन्दर्भ ज्ञातव्य (क) रायबहादुर धनपतसिंह, कलकत्ता, सन् १८७६ (ख) आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९१६ ४ अशा वयं शास्त्रमिदं गभीरं प्रायोस्य कूटानि च पुस्तकानि । सूत्र व्यवस्थाप्यमतो विमृश्य व्याख्यानकल्पादित एव नेव ॥ -प्रश्नव्याकरणवृत्ति, प्रारम्भः १३८
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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