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४. ज्ञाताधर्मकथा विवरण :- यह एक शब्दार्थ प्रधान सूत्रस्पर्शी वृत्ति है । आचार्य ने प्रत्येक अध्ययन के अन्त में उसका उपसंहार भी प्रदान किया है, उससे फलित होने वाला विशिष्ट अर्थ भी दिया है एवं उसकी परिपुष्टि के लिए तदर्थ सम्बन्धित प्रमाण भी दिये हैं । विवरण के परिशोधन में द्रोणाचार्य का सहयोग एवं सहकार प्राप्त होने का लेखक ने उल्लेख किया है । २
इसका रचनाकाल वि० सं० ११२०, विजयादशमी है और रचनास्थल अणहिलपाटक नगर है । इसका ग्रन्थमान ३८०० पद्य - परिमाण बताया गया है । ४
५. उपासक दशांगवृत्ति : - यह वृत्ति न तो अति विस्तृत है और न अति संक्षिप्त । मूल सूत्र - स्पर्शी शब्दार्थ प्रधान यह वृत्ति ८१२ पद्य - परिमाण है । प्रस्तुत वृत्ति की अपेक्षा ज्ञाता धर्म कथा पर रचित वृत्ति अधिक विस्तृत है। आचार्य ने प्रस्तुत वृत्ति में अनेक स्थानों पर यह निर्देश दिया है कि एतद्सम्बन्धित विवेचन ज्ञाताधर्मकथा विवरण अवलोकनीय है ।
१ आगमोदय समिति, मेहसाना, सन् १६१६ २ निर्वृतककुल नभस्तल चन्द्रद्रोणाख्यसूरि मुख्येन । पंडितगुणेन गुणवत्प्रियेण संशोधिता चेयम् ॥
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-ज्ञाताधर्मकथा विवरण, प्रशस्ति १०
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एकादशसु शतेष्वथ विंशत्यधिकेषु विक्रमसमानाम् । अणहिलपाटकनगरे विजयदशम्यां च सिद्धेयम् ॥
प्रत्यक्षरं गणनया ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । अनुष्टभां सहस्राणि त्रीण्येवाष्ट शतानि च ॥
- वही, प्रशस्ति १२
-वही, प्रशस्ति ११
(क) रायबहादुर धनपतसिंह, कलकत्ता, सन् १८७६ (ख) आगमोदय समिति, बम्बई, सन् १९२०
1. (ग) गुजराती - अनुवाद, जैन सोसायटी, अहमदाबाद, वि० सं० १६६२
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