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________________ सूत्र का उल्लेख मिलता है। 'गन्धहस्त्यादिष्वपि तथैव दृश्यते प्रज्ञापनायांत्वेकत्रिंशदुक्तेति मतान्तरमिदं'- इस सन्दर्भ में 'गन्धहस्ती' भाष्य का उल्लेख है। प्रस्तुत वृत्ति वि० सं० ११२० में अणहिलपुर पाटण में रची गई।' इसका प्रन्थमान ३५७५ श्लोक-परिमाण है। २ ३. व्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति :-व्याख्याप्रज्ञप्ति भगवती सूत्र का ही दूसरा नाम है। प्रस्तुत वृत्ति व्याख्या प्रज्ञप्ति के मूल सूत्रों पर लिखी गयी व्याख्या है। प्रस्तुत वृत्ति शब्दार्थ प्रधान है। इसमें व्याख्यान्तर्गत अन्य प्रन्थों के उद्धरण भी उद्धृत किये गये हैं, जिससे प्रतिपाद्य का स्पष्टीकरण एवं पुष्टीकरण हुआ है। आचार्य ने जिन पाठान्तरों और व्याख्यापरक भेदों को दिया है, वे महत्त्वपूर्ण माने जाने चाहिये । व्याख्या प्रज्ञप्ति पर यह सर्वाधिक प्राचीन उपलब्ध टीका है। आचार्य ने मूल ग्रन्थ के प्रत्येक शतक की टीका का समापन एक-एक श्लोक के साथ किया है। उनके अनुसार अणहिलपाटक नगर में वि० सं० ११२८ में यह वृत्ति लिखी गई एवं इसका प्रन्थमान १८६१६ श्लोक-प्रमाण है। १ एकादशसु शतेष्वथ विंशत्यधिकेषु विक्रमसमानाम् । अणहिलपाटकनगरे रचिता समवाय टीकेयम् ।। -समवायांगवृत्ति, प्रशस्ति ८, पृष्ठ १४८ प्रत्यक्षरं निरूप्यास्याः ग्रन्थमानं विनिश्चितम् । त्रीणि श्लोक सहस्राणि पादन्यूना च षट्शती ॥ -समवायांगवृत्ति, प्रशस्ति ६, पृष्ठ १४८ अष्टाविंशतियुक्ते वर्ष सहस्र शतेन चाभ्यधिके । अणहिलपाटकनगरे कृतेयमच्छुप्तधनिवसतौ । . .. -व्याख्याप्रशप्तिवृत्ति, प्रशस्ति १५ अष्टादशसहस्राणि षट् शतान्यथ षोडश । इत्येवं मानमेतस्यां श्लोकमानेन निश्चितम् ॥ -वही, प्रशस्ति १६
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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