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अभयदेव लोकापवाद सुनकर व्यथित हो गये। उन्होंने धरणेन्द्र का स्मरण किया। धरणेन्द्र ने रात्रि के समय अभयदेव की रुग्ण देह को जिह्वा से चाटकर रोग-मुक्त किया। निरोगीकरण के समय अभयदेव को स्वप्न रूप में ऐसा अहसास हुआ कि विकराल काल महादेव ने उनकी देह को कुण्ठित और आक्रान्त कर दिया है अतः अभयदेव ने अपने आयुष्य को शेष प्रायः समझा, उन्होंने सोचा कि अब मुझे अनशन ले लेना चाहिये । धरणेन्द्र ने जब अभयदेव के इस संकल्प को जाना तो स्वप्न में पुनः प्रगट होकर कहा इस समय ऐसे संकल्प की आवश्यकता नहीं है। मैंने आपका कुष्ठ रोग शान्त कर दिया है। अभयदेव बोले-नागेन्द्र! मैं मृत्यु से भयभीत नहीं हूँ। मेरे लिए यदि कुछ असह्य है तो वह धर्म संघ का यह लोकापवाद है। धरणेन्द्र ने अभयदेव की संघीय प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करना अत्यावश्यक समझा। उसने अभयदेव को स्तम्भन ग्राम के पास सेढिका नदी के तीर पर तीर्थंकर पार्श्वनाथ की प्रतिमा को प्रकट करने का निवेदन किया। धरणेन्द्र के संकेठानुसार आचार्य अभयदेव श्रावक संघ के साथ स्तम्भन ग्राम के समीप प्रवाहमान सेढिका नदी के तीर पर पहुँचे और धरणेन्द्र द्वारा अनुदिष्ट स्थल पर अन्तःप्रेरित भक्ति काव्य का संगान प्रारम्भ किया। ३२ पद्यों में संगायित यह स्तोत्र 'जयतिहुअण स्तोत्र' के नाम से विख्यात् हुआ। इस स्तोत्र की रचना एवं संगान से वहां भगवान पार्श्वनाथ की नयनाभिराम दिव्य प्रतिमा प्रकट हुई। वह प्रतिमा आज मी खम्भात में है। ___प्राप्त उल्लेखों के अनुसार किसी समय श्री कान्तानगरी में धनेश नामक आवक को वहां की अधिष्ठायक देवी की अनुकम्पा से तीन प्रतिमाएँ समुद्र में प्राप्त हुई। धनेश ने उनमें से एक प्रतिमा चारूप ग्राम में स्थापित की तो दूसरी को पाटण में और तीसरी को सेढ़िका नदी के किनारे वृक्ष समुदाय के बीच भूमिगृह में स्थापित की थी। कहा जाता है कि नागार्जुन ने स्स सिद्धि विद्या की साधना इसी