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________________ तीसरी प्रतिमा के समक्ष बैठकर की थी। यह तृतीय प्रतिमा अतिशय प्रभावापन्न थी । जयतिहुअण स्तोत्र के द्वारा प्रतिमा प्रगट होने के कारण स्तोत्र भी अत्यधिक प्रभावशाली माना जाने लगा। अभयदेवसूरि द्वारा सेढिका नदी के किनारे स्तोत्र-प्रभाव से प्रतिमा को प्रगट कर देने के कारण न केवल लोकापवाद मिट गया अपितु उनकी यशोगाथा भी अभिवर्धित हुई। अब तो सर्वत्र लोगों के मुँह से प्रशंसा और वाहवाही होने लगी। लोगों ने भी अपने-अपने मनोवांछित कार्य सिद्ध करने के लिए जयतिहुअण स्तोत्र का आलम्बन लिया। धरणेन्द्र ने स्तोत्र के उन दो सर्वाधिक प्रभावशाली पद्यों को लुप्त कर दिया जिनमें धरणेन्द्र को आह्वान करने का बीज मन्त्र समाहित था। खरतरगच्छ वृहद गुर्वावली ग्रन्थ के अनुसार आचार्य अभयदेव को गुजरात राज्य के खम्भात नगर में टीका रचना से पहले ही कोढ़ रोग ने घेर लिया था। शासनदेवी के द्वारा टीका की रचना का निवेदन किये जाने पर अभयदेव ने कहा-देवी ! मेरे शरीरके सारे अंग गलित हो चुके हैं। अतः मैं आगमों की टीकाओं को लिखने में असमर्थ हूँ। शासनदेवी ने कहा-जिनागम सिन्धो! आप चिन्ताक्रान्त न हों। आने वाला कल आपके वर्तमान में टीका रचना का महान भविष्य प्रतिबिम्बित होता हुआ देख रहा है। आप नवांगी टीका करेंगे और जैन धर्म के महान प्रभावक आचार्य के रूप में समाहत होंगे।' वृद्धाचार्य प्रबन्धावलि में भी उक्त तथ्य की पुष्टि की गई है । विविध तीर्थकल्प प्रन्थ के अनुसार आचार्य अभयदेव को खम्भात नगर में अतिसार रोग ने जकड़ लिया था। रोग वर्धन देख आचार्य ने अनशन स्वीकार करने की मन में ठानी। समीपवर्ती गांवों से जो श्रावक पाक्षिक प्रतिक्रमण करने आते थे उन्हें दो दिन पहले ही १ युगप्रधानाचार्य गुर्वांवलि, पृष्ठ ६ २ वृद्धाचार्य प्रबन्धावलि, पृष्ठ ६० १२६
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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