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________________ बुद्धिसागरसूरि के शिष्य थे। इनके प्रगुरु आचार्य वर्धमानसूरि थे । यह तथ्य स्वयं आचार्य अभयदेव ने लिखा है । ' उक्त गुरु- परम्परानुसार यह स्पष्ट हो जाता है कि अभयदेवरि खरतरगच्छीय ही थे । वि० सं० १६१७ में उपाध्याय धर्मसागर ने यह आक्षेप लगाया था कि आचार्य अभयदेवसूरि खरतरगच्छीय नहीं थे । उपाध्याय के अनुसार खरतरगच्छ की उत्पत्ति वि० सं० १२०४ में हुई थी । यद्यपि अनेक तपागच्छाचार्यों ने एवं अन्य विद्वानों ने अभयदेवसूरि को निर्विवाद रूप से खरतरगच्छीय ही माना है । उपाध्याय धर्मसागर के उक्त आक्षेपों का निराकरण करने के लिए सं० १६१७ में एक विशाल संगीति का आयोजन किया गया जिसमें तत्कालीन अनेक मूर्धन्य आचार्यों, मुनियों और विद्वानों ने सर्वसम्मति से यह घोषित किया कि अभयदेवसूरि खरतरगच्छीय थे । इस संगीति में लिए गये निर्णयों का एक पत्र प्राप्त हुआ है, जिसमें निर्णयकारों के हस्ताक्षर हुए संलग्न है । वह पत्र इस प्रकार है स्वस्ति श्री सं० १६१७ वर्षे कार्त्तिक सुदि सप्तमी दिने शुक्रवारे श्री पाटण महानगरे श्री खरतरगच्छ नायक वादि कंदकुदाल भट्टारक श्री जिनचंद्रसूरिजी चउमासि कीधी रह्या हूंता तिवारइ ऋषिमति धर्मसागरे कूड़ी चरचा मांडी जउ श्री अभयदेवसूरि नावांगी वृत्तिकारक श्री स्तंभना पार्श्वनाथ प्रकट कर्ता, ते खरतरगच्छ न हुआ । एहुवी बात सांभली तिवारी श्री जिनचंद्र ए खरतर सूरि, (ए विचारी बात ) १ तच्चन्द्र कुलीन प्रवचन -प्रणीता - प्रतिबद्धविहार हारि चरित - श्रीवर्धमानाभिधानमुनिपतिपादोपसेविनः प्रमाणादिव्युत्पादन प्रवणप्रकरण प्रबन्ध प्रणयिनः प्रबुद्ध प्रतिबन्ध प्रवक्तृ प्रवीणाप्रतिहत प्रवचनार्थ - प्रधानवाक् प्रसरस्य सुविहित मुनिजनमुख्यस्य श्री जिनेश्वराचार्यस्य तदनुजस्य च व्याकरणादि शास्त्रकर्त्तः श्री बुद्धिसागराचार्यस्य चरणकमल चञ्चरीककल्पेन श्रीमदभयदेवसूरि नाम्ना मया: । -- - स्थानांगवृत्ति, प्रशस्ति, पृष्ठ ४६६ ११६
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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