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अत्यन्त गौरवशाली हुई है। यदि आचार्य अभयदेव को 'जनागमप्रभाकर' कहा जाये तो उनके व्यक्तित्व के लिए सही उपमा होगी।
अभयदेव का व्यक्तित्व 'श्रममेव जयते' उक्ति को चरितार्थ करता है। इनकी साम्प्रदायिक उदारता, तितिक्षा, स्वाद-विजयिता एवं सारस्वतता दूसरों के लिए आदर्शभूत रही।
यद्यपि आचार्य जिनेश्वरसूरि के परम्परा में ये तृतीय पट्टधर हुए, किन्तु ख्याति गरिमा और महिमा की दृष्टि से अभयदेव अद्वितीय पट्टधर हुए। ___ आचार्य अभयदेव न केवल अपने समकालीन विद्वत् जगत में प्रतिष्ठा प्राप्त थे, अपितु परवर्ती काल में हुए बहुत से आचार्यों ने निष्पक्ष भाव से उनके प्रति अपनी आस्था व्यक्त की है। आगम-निगम तर्कन्याय आदि अनेक विषयों के वे वेत्ता थे। आपने अनेक साधुओं को अध्यापन करवाकर उद्भट विद्वान बनाया था। प्रसन्नचन्द्रसूरि, वर्धमानसूरि, हरिभद्रसूरि, देवदत्तसूरि प्रभृति आचार्य उन्हीं से अध्यापित थे। वे न केवल एक प्रतिष्ठित आचार्य थे, अपितु एक दार्शनिक, विचारक, कवि, साहित्यकार एवं टीकाकार भी थे। आज उनका साहित्य ही उनका वास्तविक परिचय है। परवर्ती विद्वानों ने आचार्य अभयदेव के सम्बन्ध में जो-जो उल्लेख किये हैं, उनमें से भी आपके अनुपमेय व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश पड़ता है। आचार्य अभयदेव का कृतित्व तो अपने आप में स्पष्ट एवं प्रामाणिक है, किन्तु उनका जीवन-वृत्त यत् किंचित विवाद का विषय बना हुआ है। अभयदेव का गच्छ
आचार्य अभयदेव खरतरगच्छ-प्रवर्तक आचार्य जिनेश्वरसूरि, । द्रष्टव्य : चित्रकूटीय वीर चैत्य प्रशस्ति
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