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________________ और धनपाल ने खुलकर प्रयोग किया है। कथा और शैली में समानता होते हुए भी तिलकमंजरी को कादम्बरी का उपजीव्य नहीं कहा जा सकता। तिलकमंजरी में ऐसी कई विशेषताएँ हैं जो उसको अन्य गद्य काव्यों की अपेक्षा श्रेष्ठता दिलाती है । १. जैसे इसके गद्य अधिक लम्बे और अनेक पदों से निर्मित समास की बहुलता से रहित है। २. इसमें श्लेषालंकार की बहुलता नहीं है। ३. विशेषणों की भरमार नहीं है अतः कथा-आस्वादन में चमत्कृति है। ४. इसमें श्रुत्यनुप्रास द्वारा श्रवणमधुरता उत्पन्न की गई है । यह ग्रन्थ काव्यमाला सिरीज, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई द्वारा सं० १६३८ में प्रकाशित हुआ। धनपाल की 'ऋषभपंचाशिका' स्तोत्र-साहित्य की एक प्रमुख कृति मानी जाती है। इसमें भगवान ऋषभदेव की भक्तिभावपूर्वक काव्यात्मक स्तुति की गई है। इसी प्रकार उनकी अन्य कृतियां भी महत्त्वपूर्ण एवं उपयोगी हैं। समय-संकेत ___ महाकवि धनपाल का समय विक्रम की ग्यारहवीं शदी मान्य है। ये आचार्य जिनेश्वर के समकालीन विद्वान थे । महाप्रज्ञ आचार्य जिनचन्द्रसूरि 'संवेगरंगशाला' के रचनाकार आचार्य जिनचन्द्रसूरि एक विश्रुत व्यक्तित्व एवं उदात्त चिन्तक थे। जैन धर्म के प्रभावापन्न आचार्यों में ये एक हैं। अहंन्नीति के उन्नयन में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण रही। जीवन-वृत्त आचार्य जिनचन्द्रसूरि का जीवन-वृत्त अभी तक ज्ञात नहीं हो पाया है। प्राप्त शोध-सन्दर्भो में मात्र इनकी साहित्यिक सेवाओं का उल्लेख किया गया है। युगप्रधानाचार्य गुर्वावली के अनुसार ये
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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