________________
आचार्य हेमचन्द्र ने 'अभिधान चिन्तामणि' कोश के प्रारम्भ में "व्युत्पत्तिर्धनपालतः' ऐसा उल्लेख कर धनपाल के कोशग्रन्थ को प्रमाणभूत बताया है। हेमचन्दरचित 'देशी नाम माला' (रयणावली) में भी धनपाल का उल्लेख है। 'शाङ्गधर-पद्धति' में धनपाल के कोशविषयक पद्यों के उद्धरण मिलते हैं और एक टिप्पणी में धनपालरचित 'नाममाला' के १८०० श्लोक-परिमाण होने का उल्लेख किया गया है। इन सब प्रमाणों से मालूम होता है कि धनपाल ने संस्कृत और देशी शब्द कोश-ग्रन्थों की रचना की होगी, जो आज उपलब्ध नहीं है। यह ग्रन्थ बुहर द्वारा सम्पादित होकर सन् १८७६ में प्रकाशित हुआ है।' __ महाकवि धनपाल की तिलक मंजरी नामक गद्य आख्यायिका साहित्य जगत् की एक महान् उपलब्धि मानी जाती है। कवि ने प्रन्थ के प्रारम्भ में धारा के परमार राजाओं की वैरीसिंह से लेकर भोज तक की वंशावली दी है जिसका ऐतिहासिक महत्व भी है। इस ग्रन्थ की रचना राजा भोज के जैन आगमों में निबद्ध कथा सुनने के कुतुहल को मिटाने के लिए की गई।
तिलक मंजरी जैन साहित्य का एक उच्चस्तरीय गद्य काव्य माना जाता है। इसका नाम नायिका के नाम से रखा गया है और इसकी रचना शैली महाकवि बाण की कादम्बरी की शैली का अनुकरण करती है। समीक्षात्मक अध्ययन के दृष्टिकोण से कादम्बरी और तिलक मंजरी अपने-अपने समय की अद्वितीय रचना है । इनकी कथावस्तु में काफी साम्य है। कथानक से जुड़े नायक, नायिका, उपनायिका उनके हावभाव, उनके जीवन की गतिविधियां सब में सादृश्यता के चिह्न देखे जा सकते हैं। शैली की दृष्टि से भी दोनों काव्यों में समानता है। शब्दालंकारों एवं अर्थालंकारों के द्वारा घटना तथा वर्णन को बोझिल रखा गया है। परिसंख्यालंकार और विरोधाभाषालंकार का बाण । जैन साहित्य का वृहत् इतिहास, भाग-५, पृष्ठ-७८-७६