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आदेश दिया । धनपाल ने वैसा न किया, तो भोजराज ने ग्रन्थ जला दिया इससे धनपाल के स्वाभिमान को आघात लगा और धनपाल साचोर में आकर बस गये ।
परवर्ती कवियों एवं विद्वानों ने महाकवि धनपाल का अपने ग्रन्थों में बड़े ही आदर के साथ उल्लेख किया है। जैसे - आचार्य चन्द्रसूरि ने सनत्कुमारचरित के प्रारम्भ में, आचार्य महेन्द्रसूरि ने 'अनेकार्थ
संग्रह - टीका' के प्रारम्भ में ।
साहित्य
धनपाल ने अनेक रचनाएँ लिखी जिनमें तिलकमंजरी नामक रचना सर्वोत्तम है । यह रचना कथा-साहित्य से सम्बन्धित है । विद्वानों ने तिलकमंजरी को कथा साहित्य का विशिष्ट रत्न बताया है और सम्प्रति यह कतिपय विश्व विद्यालयों में पाठ्यक्रम की पुस्तिकाओं में स्वीकृत है ।
महाकवि धनपाल द्वारा रचित ग्रन्थ इस प्रकार है(१) पाइयलच्छी नाममाला ( प्राकृत - कोश )
(२) तिलक मंजरी ( संस्कृत - गद्य )
(३) श्रावक विधि ( प्राकृत-पद्य ) (४) ऋषभपंचाशिका ( प्राकृत - पद्य )
(५) महावीर स्तुति ( प्राकृत पद्य )
(६) सत्यपुरीय मंडन- महावीरोत्साह ( अपभ्रंश - पद्य ) (७) शोभनस्तुति - टीका ( संस्कृत - गद्य )
पंडित अम्बालाल प्रे० शाह के शोध के अनुसार धनपाल ने अपनी छोटी बहिन सुन्दरी के लिए 'पाइयलच्छी नाममाला' कोश - प्रन्थ की रचना वि० सं० १०२६ में की है। इसमें की २७६ गाथाएँ आर्या छन्द में हैं। यह कोश एकार्थक शब्दों का बोध कराता है । इसमें ६६८ प्राकृत शब्दों के पर्याय दिये गये हैं ।
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