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________________ धनपाल के पिता का नाम सर्वदेव और पितामह का देवर्षि था । पितामह देवर्षि मध्यदेश के सांकश्य ( संकिस, जिला फर्रुखाबाद ) नामक गाँव के मूल निवासी थे, किन्तु उज्जयिनी में आ बसे । धनपाल के छोटे भाई का नाम शोभन था और बहिन का नाम सुन्दरी था । इनमें शोभन तो प्रत्रजित हो गया । धनपाल को अपनी बहिन से काफी प्रेम था और उन्होंने उसके लिए 'तिलक मंजरी' ग्रन्थ का निर्माण किया । महाकवि धनपाल जन्म जात ब्राह्मण थे । यह एक संयोग ही है, खरतरगच्छ का वीजारोपण करने में ब्राह्मण वर्ग का अप्रतिम अनुदान रहा है । धनपाल के छोटे भाई शोभन ने आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि से प्रब्रज्या ग्रहण की थी । वास्तव में शोभन मुनि के कारण ही महाकवि धनपाल जैन धर्म के प्रति श्रद्धान्वित हुए और खरतरगच्छ के एकनिष्ठ अनुयायी बने । धनपाल शोभन मुनि तथा उनके गुरु को सन्मान की दृष्टि से देखता था । प्राप्त प्रमाणों के अनुसार धनपाल ने शोभन मुनि की प्रेरणा से जैन धर्म तथा उसके तत्त्व-दर्शन का गहन अध्ययन किया था । जैन दर्शन के प्रति विशेष श्रद्धा हो जाने के कारण धनपाल ने जैनत्व अंगीकार किया। भाई के प्रत्रजित होने से वे सदा खरतरगच्छ के प्रति निष्ठावान बने रहे। आपने 'श्रावक - विधि' ग्रन्थ में जिस प्रकार से श्रावक की दिनचर्या और विधि-विधानों का विवेचन किया है वह आद्योपान्त खरतरगच्छ से प्रभावित है । इन्होंने महाकवि की हैसियत से अनेक ग्रन्थों का सृजन किया । धनपाल धारानगरी के महाराजा मुंजराज की राजसभा के सम्मान्य पंडित थे । सारी राजसभा उन्हें 'सरस्वती' कहती थी । भोजराज ने धनपाल को राजसभा में 'कूर्चाल सरस्वती' और 'सिद्धसारस्वत कवीश्वर' जैसी मानक उपाधियाँ देकर सम्मानित किया । 'सत्यपुरीयमंडन- महावीरोत्साह' में किये गये उल्लेखों के अनुसार भोजराज और धनपाल की काफी पटती थी, किन्तु बाद में दोनों में बैमनस्य हो गया । भोजराज ने 'तिलक - मंजरी' प्रन्थ कुछ बदलने का १०६
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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