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________________ कल्याणमति को महत्तरापद आचार्य वर्धमानसूरि ने प्रदान किया था । इस पदारोहण के बाद ही आचार्य को प्रतिभा सम्पन्न शिष्य मिले थे। महत्तरा साध्वी कल्याणमति आचार्य जिनेश्वर एवं बुद्धिसागर की बहिन थी । जिनेश्वर एवं बुद्धिसागर जन्मजात ब्राह्मण थे, अतः कल्याणमतिभी निश्चित रूप से ब्राह्मण कुल में जन्मी थी । बन्धुओं द्वारा अपनाये गये पथ को समुचित जानकर कल्याणमति ने भी प्रव्रज्या स्वीकार कर ली थी । ज्ञान-ध्यान - स्वाध्याय में वैशिष्ट्य प्राप्त कर महत्तरा - पदारूढ़ हुई । इसके अतिरिक्त महत्तरा के जीवन-वृत्त के बारे में अन्य कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होते हैं । समय-संकेत आचार्य जिनेश्वर एवं बुद्धिसागरसूरि के समकालीन हुई महत्तरा कल्याणमति । महाकवि धनपाल खरतरगच्छ में जहाँ श्रमणमण्डल में जिनेश्वरसूरि प्रथम साहित्यसर्जक हुए, वहाँ श्रावक मण्डल में धनपाल को प्रथम साहित्य सर्जक कहा जा सकता है । धनपाल एक अध्ययनशील, विद्वान, कथाकार, कवि और मनीषी थे । प्राकृत, संस्कृत और अपभ्रंश इन तीनों भाषाओं पर इनका वर्चस्व था । प्राकृत कोश की रचना करने वाले जैन गृहस्थ लेखकों में इनका स्थान अग्रणी है । 1 जीवन-वृत्त प्रभावक चरित के महेन्द्रसूरि प्रबन्ध, प्रबन्ध - चिन्तामणि के धनपाल प्रबन्ध, रत्नमन्दिरगणि के भोजप्रबन्ध में धनपाल के सम्बन्ध में कई आख्यान दिये गये हैं । १ द्रष्टव्य : युगप्रधानाचार्य गुर्वावली, पृष्ठ ५ १०८
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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