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सुन्दरी कथा की प्रशस्ति में आता है। इसके सिवाय सं० ११२० में अभयदेवसूरिकृत पञ्चाशक-वृत्ति (प्रशस्ति श्लो० ३) में, सं० ११३६ में गुणचंद्र रचित महावीर चरित (प्राकृत-प्रस्ताव ८, श्लो० ५३) में, जिनदतसूरि-रचित गणधरसाद शतक ( पद्य ६६) में पद्मप्रम कृत कुन्थुनाथ चरित और प्रभावक चरित ( अभयदेवसूरि चरित) में भी इस प्रन्थ का नामोल्लेख आता है । इस व्याकरण की हस्तलिखित प्रति जैसलमेर ज्ञान-भंडार में है। प्रति अत्यन्त अशुद्ध है।'
बुद्धिसागर की एक अन्य कृति 'छन्दः शास्त्र' का भी उल्लेख मिलता है। इस ग्रन्थ का अभी तक पता नहीं लगा है। आचार्य गुणचन्द्रसूरि ने वि० सं० ११३६ में 'महावीर चरिय' की प्रशस्ति में इस प्रन्थ का उल्लेख किया है। समय-संकेत
आचार्य बुद्धिसागरसूरि विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में हुए। ये आचार्य जिनेश्वर के छोटे भाई थे। इनका जन्म-दिवस या स्वर्गवास दिवस अज्ञात है। उन्होंने पंचलिंगी-व्याकरण ग्रन्थ की रचना सं० १०८० में की थी। इनका समय वि० सं० १०६० से १११० तक माना. जा सकता है। महत्तरा कल्याणमति
खरतरगच्छ का साध्वी-समुदाय अत्यन्त विस्तृत रहा, किन्तु उसके बारे में विशेष ऐतिहासिक तथ्य प्राप्त नहीं होते। खरतरगच्छ की प्रथम सर्वोपरि साध्वी के रूप में कल्याणमति का नाम प्राप्त होता है। जीवन-वृत्त
साध्वी कल्याणमति खरतरगच्छ की वह साध्वी हैं, जो इस गच्छ की प्रथम महत्तरा बनी। युगप्रधानाचार्य गुर्बावली के अनुसार । जैन साहित्य का वृहत इतिहास, भाग-५, पृष्ठ २२
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