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फिर भी कुछेक ग्रन्थ उपलब्ध हो गये हैं, किन्तु बुद्धिसागरसूरि का एक ही ग्रन्थ उपलब्ध हो पाया है-पंचपन्थी । ---- __'पंचग्रन्थी' संस्कृत-व्याकरण का महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। श्वेताम्बर आचार्यों में जिन विद्वानों द्वारा रचित व्याकरण-ग्रन्थ प्राप्त होते हैं, उनमें 'पंचलिंगी-व्याकरण' सर्वप्रथम है। इसका दूसरा नाम बुद्धिसागर-व्याकरण' और 'शब्दलक्ष्म' है। इसकी रचना जावालिपुर में वि० सं० १०८० में हुई
श्री विक्रमादित्यनरेन्द्रकालात् साशीतिके याति समासहस्र । सश्रीकजावालिपुरे तदाद्यं दृन्धं मया सप्तसहस्रकल्पम् ।
यह ग्रन्थ गद्य और पद्यमय है, जिसका श्लोक-प्रमाण ७००० है। धातुपाठ, सूत्रपाठ, गणपाठ, उणादिसूत्र पद्यबद्ध हैं। इसकी रचना अनेक व्याकरण-ग्रन्थों के आधार पर की गई है।' ___ आचार्य बुद्धिसागरसूरि ने प्रस्तुत ग्रन्थ का रचना-उद्देश्य बताते हुए लिखा है कि ब्राह्मणों ने जैनों पर आक्षेप किया कि जैन लोग परग्रन्थोपजीवी हैं। उनमें शब्दलक्ष्म और प्रमालक्ष्म है ही कहाँ ? इस आक्षेप का निराकरण करने के लिए बुद्धिसागर ने इस महा व्याकरण ग्रन्थ की रचना की।
इस व्याकरण का उल्लेख सं० १०६५ में धनेश्वरसूरि रचित सुर१ श्री बुद्धिसागराचार्यैः पाणिनि-चन्द्र जैनेन्द्र-विश्रान्त-दुर्गटीकामवलोक्य
वृत्तबन्धैः। धातुसूत्र-गणोणादिवृत्त बन्धैः कृतं व्याकरणं संस्कृत शब्द प्राकृत शब्द सिद्धये । -प्रमालक्ष्मप्रान्ते । तेरवधीरिते यत् तु प्रवृत्तिराबयोरिह । तत्र दुर्जनवाक्यानि प्रवृत्तेः सन्निबन्धनम् ।। शब्द लक्ष्म-प्रमालक्ष्म यदेतेषां न विद्यते । नादिमन्तस्ततो ह्य ते पर लक्ष्मोप जीविनः ।।
प्रमालक्ष्म, प्रान्ते (४०३-४०४),