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________________ में स्वागत किया और कहा कि ये जैन ऋषि लोग यहां आये हुए हैं, इन्हें आप उपाय प्रदान करें। यह सुनकर शैवाचार्य ने हँसते हुए कहा, राजन ! आप मुनियों का सम्मान कर रहे हैं, यह बहुत अच्छी बात है। वास्तव में शिव और जिन एक ही हैं। केवल मूर्खतावश इनको अलग-अलग मान लिया गया है शिव एव जिनो बाहत्यागात् पर पदस्थितः। दर्शनेषु विभेदो हि मिथ्यामते रिदं ।' यह कहकर शैवाचार्य ने "त्रिपुरुष प्रासाद" नामक शिव मंदिर के पास ही कणहट्टी में उपाश्रय निर्माण हेतु स्वीकृति प्रदान की और एक ब्राह्मण को यह कार्य करने के लिए नियुक्त किया। उपाश्रय कुछ ही दिनों में निर्मित हो गया। महोपाध्याय विनयसागर के मतानुसार सम्भवतः इसी समय से वसतियों अर्थात् उपाश्रयों की परम्परा शुरू हो गई।२ इसके पश्चात् दोनों पक्षों में शास्त्रार्थ वाद-विवाद हुआ। जिसका विवेचन हम पूर्व पृष्ठों में कर चुके हैं। यहाँ इसका पिष्टपेषण करना उचित नहीं है। ___ अणहिलपुर पत्तन से आचार्य जिनेश्वरसूरि ने किन-किन प्रदेशों में विहार किया उसका विस्तृत उल्लेख तो उपलब्ध नहीं है, किन्तु अष्टक प्रकरण वृत्ति की रचना उन्होंने वि० सं० १०८० में जालोर नगर में की थी। जिससे सिद्ध किया जा सकता है कि सं० १०८० में वे जालोर गये थे। वि० सं० १०६२ में उन्होंने अनेकार्थ एवं संयुक्त वैदग्ध्यपूर्ण लीलावती कथा नामक रचना निबद्ध की थी, जिसमें रचनास्थल आशापल्लो निर्दिष्ट है । अतः जिनेश्वरसूरि ने १०६२ में आशापल्ली के क्षेत्रों की यात्रा की थी। वि० सं० १०६५ में वे पुनः जालोर गये १ प्रभावक चरित, ८६ २ वल्लभ भारती, पृष्ठ २४ SC
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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