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________________ उपाध्याय जिनपाल एवं गणि सुमति आदि ने उपर्युक्त प्रसंग का उल्लेख दूसरे ढंग से किया है- यह बात सारे शहर में फैल गई कि वसतिवासी कोई नवीन यति-मुनि लोग आये हैं । स्थानीय चैत्यवासी यतियों ने भी जब यह बात सुनी तो उन्हें उनका आगमन अच्छा नहीं लगा और यह सोचकर उनका प्रतिकार करने लगे कि रोग उत्पन्न होते ही उसे नष्ट कर दिया जाय । चैत्यवासियों ने अधिकारियों के उन बच्चों को जो उनके पास अध्ययन करते थे, मिठाई देकर प्रसन्न किया और उनके द्वारा नगर में यह बात फैलाई कि ये परदेशी मुनि के रूप में कोई गुप्तचर आये हैं, जो दुर्लभराज के रहस्यों को जानना चाहते हैं । फलस्वरूप यह बात जनसाधारण में प्रसारित हो गई और क्रमशः राज्यसभा तक जा पहुंची। तब राजा ने कहा, यदि यह बात यथार्थ है और ऐसे क्षुद्र पुरुष आये हैं तो किसने उन्हें आश्रय दिया है ? तब किसी ने कहा, राजन् ! आपके राजपुरोहित ने ही उन्हें अपने घर में ठहराया है । उसी समय राजा की आज्ञा से पुरोहित को राज्यमें 'बुलाया गया। राजा ने पुरोहित से पूछा, यदि ये धूर्त पुरुष हैं तो आपने इन्हें अपने यहाँ आश्रय क्यों दिया ? पुरोहित ने कहा, यह गलत बात किसने फैलायी है। ? मैं 'लाख पारुत्थ (एक प्रकार की (मुद्रा) की शर्त लगाने के लिए ये कौड़ियाँ फेंकता हूँ । इन्हें दोषयुक्त सिद्ध करने वाला इन कौड़ियों को स्पर्श करे । परन्तु किसी ने कौड़ियों का स्पर्श नहीं किया । तदर्थ पुरोहित ने राजा से कहा, वे मेरे घर में ठहरे हुए यतिजन साक्षात् धर्म-पुंज दिखाई देते हैं । उनमें किसी भी प्रकार का दोष नहीं है। यह सुनकर सूराचार्य आदि स्थानीय चैत्यवासी यतियों ने विचार किया कि इन विदेशी मुनियों को शास्त्रार्थ में जीत कर निकाल देना चाहिए। उन्होंने पुरोहित से कहा कि हम तुम्हारे घर में रुके हुए मुनियों के साथ शास्त्र - विचार करना चाहते हैं । पुरोहित ने वर्द्धमानसूरि, जिनेश्वर गणि आदि को सारी वस्तुस्थिति से अवगत कराया । जिनेश्वर ने कहा- ठीक है, 1 सभा आप ६६
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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