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________________ अर्थ से चतुर्वेद को जानने वाले हम चतुर्वेदी ब्राह्मण हैं। तब प्रसन्न होकर पुरोहित ने पूछा, आप कहाँ से पधारे हैं और यहाँ कहाँ विराज रहे हैं ? जिनेश्वर ने उत्तर दिया, हम दिल्ली प्रान्त से आये हैं और इस देश में हमारे विरोधी व्यक्ति होने के कारण हमें कोई उचित स्थान नहीं मिला है। अभी शहर के बाहर चुंगीघर में ठहरे हैं। यह सुनकर पुरोहित ने कहा, वह चतुःशाला वाला मेरा मकान है । इसमें एक और पर्दा बांधकर एक शाला में आप सब सुखपूर्वक विराजें। भिक्षा के समय मेरे कर्मचारी का आपके साथ रहने से ब्राह्मणों के घरों में आपको सुखपूर्वक भिक्षा प्राप्त हो जायेगी। इस प्रकार पुरोहित के आग्रह से ये लोग उसकी चतुःशाला के एक भाग में आकर ठहर गये। प्रभावक चरित में प्राप्त उल्लेखों के अनुसार इन साधुओं के आगमन से पुरोहित के भवन में नगर के अनेक प्रतिष्ठित पंडितों का जमघट होने लगा। प्रतिदिन मध्याह्न में याज्ञिक, स्मार्त, दीक्षित, 'अग्निहोत्री ब्राह्मण आते और शास्त्र-चर्चा करते । वहाँ ऐसा विद्याविनोद होने लगा, जैसा ब्रह्मा की सभा में होता था। देखिए, प्रभावक चरितकार के शब्दों में मध्याह्न याज्ञिक स्मार्त दीक्षिताग्नि होत्रिणः । आह्य दर्शितौ तत्र नियूंटो तत्परीक्षया । या वदे विद्या विनोदो यं स्थापितावाश्रयेनिजे ।' इस बात की ख्याति नगर में फैल गई और चैत्यवासी लोग मी वहां आये। चैत्यवासियों को इन वसतिवासी मुनियों की प्रतिष्ठा देखकर बड़ी ईर्ष्या हुई और उन्होंने उन मुनियों को नगर से बाहर निकल जाने को कहा, क्योंकि उनके अनुसार चैत्य-बाह्य मुनियों का नगर में ठहरना राजाज्ञा से निषिद्ध था। राजपुरोहित ने चैत्यवासियों की इस बात पर आपत्ति की और कहा कि इसका निर्णय राज्यसभा में होगा। । प्रभावक चरित, ६२-६३ --- . --
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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