SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ को विस्तारपूर्वक दिया गया है। युगप्रधानाचार्य गुर्वावली में लिखा है कि आचार्य वर्धमानसूरि अपने १८ शिष्यों सहित अणहिलपत्तन गये और नगर के बाहर खुली मण्डपिका अर्थात् राजकीय चुंगीघर में ठहरे। उस समय वहां उसके आस-पास कोट नहीं था, जिससे सुरक्षा हो। इसके अतिरिक्त शहर में सुविहित साधुओं का कोई भक्त श्रावक भी नहीं रहता था, जिसके पास जाकर स्थानादि की याचना की जा सके। अन्त में आचार्यश्री को ग्रीष्म से आक्रान्त देखकर जिनेश्वर ने कहा, पूज्यपाद! बैठे रहने से कोई कार्य नहीं होता। आचार्य ने कहा, क्या करना चाहिए ? जिनेश्वर ने निवेदन किया-यदि आप आज्ञा दें तो सामने जो बड़ा घर दिखाई दे रहा है वहाँ जाऊँ, शायद वहीं स्थान मिल जाय। आचार्यश्री ने कहा जाओ तब । गुरु को वन्दन कर वे वहां से चले। ___वह भवन राजा दुर्लभराज के पुरोहित का था। उस समय वह पुरोहित अपने शरीर में अभ्यंग मर्दन करा रहा था। जिनेश्वर ने उसके सामने जाकर आशीर्वाद दिया श्रिये कृतनतांनदा, विशेष वृष संगताः। भवन्तु तव विप्रेन्द्र! ब्रह्म श्रीधर शंकराः॥ अर्थात् हे ब्राह्मण श्रेष्ठ ! भक्तों को आनन्द देने वाले, क्रमशः हंस, शेषनाग और वृषभ पर चढ़ने वाले ब्रह्मा, विष्णु और शिव आपका श्रेय करें। यह सुनकर पुरोहित बहुत प्रसन्न हुआ और मन में विचार किया कि यह साधु कोई विचक्षण बुद्धिमान ज्ञात होता है। पुरोहित के घर अनेक छात्र वेद-पाठ कर रहे थे। उसे सुनकर पंडित जिनेश्वर ने कहा, इस तरह पाठ मत करो। यह सुनकर पुरोहित ने कहा, शुद्रों को वेद पठन-पाठन का अधिकार नहीं है, तो तुम कैसे जान सके कि यह पाठ अशुद्ध है ? गणि जिनेश्वर ने कहा, सूत्र और
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy