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________________ प्रभावक चरितकार ने आगे यह बताया है कि अणहिलपुर पत्तन में इन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। चैत्यवासियों का प्रभाव होने के कारण इन लोगों को ठहरने का कहीं भी स्थान नहीं मिला। अन्त में ये सोमेश्वर नामक पुरोहित के घर पहुंचे। वहाँ जिनेश्वर ने अपनी प्रतिभा तथा विद्वत्ता के संकेत स्वरूप वेद-मंत्रों का उच्चारण किया और वेद के ब्राह्म, पैत्य और दैवत रहस्यों का उद्घाटन किया। सोमेश्वर आगन्तुक के ज्ञान-गाम्भीर्य को देखकर स्तम्भित-सा हो गया। उसे ऐसा प्रतीत होने लगा कि उसकी समस्त इन्द्रियों की चेतनता उसकी श्रुतियों में ही आ गई है तवानध्यान निर्मग्नचेताः स्तविभवत सदा । समग्रेन्द्रिय चैतन्यं, श्रुत्योरवेस नीववान् ।' सोमेश्वर ने उनका आदर करने के लिए अपना आसन छोड़ दोनों आगन्तुकों को आसन प्रदान किया। आचार्य जिनेश्वर ने इस अगवानी पर आशीर्वाद दिया अपाणिपादो मनोग्रहीता पश्यत्व चक्षुःसणोत्यकर्णः स वेत्ति विश्वं न हि तस्य वेत्ताशिधो ह्रारूपीस जिनोवताद्क। यह सुनकर पुरोहित सोमेश्वर अत्यधिक आह्लादित हुआ। उसने उनके प्रति सद्भावना एवं सहानुभूति व्यक्त करने के लिए उनका परिचय पूछा। जिनेश्वर ने प्रत्युत्तर स्वरूप अपना परिचय एवं समग्र वस्तुस्थिति बता दी। सोमेश्वर ने विद्वान सन्तों का समादर करना अपना कर्तव्य समझा और उसने चन्द्रशाला में इन्हें ठहरने के लिए स्थान दे दिया। दोनों आचार्य अपने श्रमण-वर्ग सहित यथोचित श्रमण-धर्म का पालन करते हुए वहां रहने लगे। गणधरसार्धशतक वृत्ति एवं युगप्रधानाचार्य गुर्वावली में उक्त प्रसंग । युग प्रधानाचार्य गुर्वावली ---
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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