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________________ समय-संकेत : आचार्य वर्धमानसूरि का समय वि० सं० १०२० से १०८८ तक माना जाता है। आपका नामोल्लेखपूर्वक सर्वाधिक प्राचीन प्रतिमाअभिलेख कटिग्राम में से वि० सं० १०४६ का प्राप्त होता है। उनके समय में सपाद लक्षदेश में अल्लराजा के पौत्र भुवनपाल का शासन था।' महामहिम क्रान्तदर्शी आचार्य जिनेश्वरसूरि आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि खरतरगच्छ की आधार-शिला हैं। यही वह बीज है जिससे खरतरगच्छ का वट-वृक्ष अंकुरित एवं पल्लवित हुआ। जिस गच्छ में भारतीय संस्कृति को ज्योतिर्मय बनाने के लिए समय-समय पर अनेकानेक कार्य एवं बलिदान हुए, उस गच्छ का आचार्य जिनेश्वरसूरि द्वारा प्रवर्तित होना एक स्वर्णिम ऐतिहासिक पहल है। वास्तव में जैसा बीज होगा तदनुरूप ही उसका वृक्ष होगा। आखिर बीज में ही तो आच्छन्न है विशाल वटवृक्ष का भविष्य । आचार्य जिनेश्वरसूरि के प्रखर पाण्डित्य, उत्कृष्ट चारित्र, गम्भीर व्यक्तित्व और प्रबुद्ध कृतित्व के फलस्वरूप ही उनका गच्छ अनुपमेय व्यवस्थामूलक तथा नैतिक पृष्ठभूमि में प्रतिष्ठित रहा। अपने समय के सर्वाधिक प्रभावशाली आचार्य सूर को शास्त्रार्थ में पराजित कर धर्म संघ में स्वयं की प्रतिष्ठा को अधिकाधिक विस्तारित किया। वे अपने समय के अद्वितीय प्रज्ञा-निष्पन्न व्यक्तित्व थे। जीवन-वृत्त प्रभावक-चरितकार आदि के अनुसार जिनेश्वर गृहस्थ जीवन में मध्यदेश के निवासी थे। इनके पिता का नाम कृष्ण था, जो एक ब्राह्मण जाति के थे। जिनेश्वर का जन्म-नाम श्रीधर था, और उनके भाई ' प्रभावकचरित, पृष्ठ १६२ --- ........
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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