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________________ प्रकाशकीय जैनधर्म अपनी मौलिकताओं एवं नैतिक मापदण्डों की स्थापना के लिए विश्व-विख्यात है। खरतरगच्छ एक क्रान्तिकारी अभियान है, जिसकी बुनियाद जैनधर्म की प्रतिष्ठा को जर्जर होने से बचाता है। खरतरगच्छ शिथिलाचार की विकराल होती दानवीय छाया के लिए चुनौती बनकर उभरा। इसलिए यह गच्छ अपने-आप में एक क्रान्तिरथ है, जिस पर पूजनीय आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि, युगप्रधान जिनदत्तसूरि जैसे महामहिम। धर्मरथिकों ने आरूढ़ होकर श्रमण-जीवन में प्रविष्ट तमस् वातावरण को अपनी प्रखर किरणों से चीरकर प्रामाणिकता/मौलिकता/स्वच्छता का कीर्तिमान स्थापित किया। इस प्रकार इस गच्छ ने जैनधर्म को नया नेतृत्व प्रदान किया। इसलिए इसका इतिहास जैनधर्म की धुंधली/सुधरी छवि को पेश करता हुआ अपनी निरन्तर प्राप्त सफलताओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत करता है। जरूरत है इसे रू-ब-रू ऐतिहासिक ढंग से उपस्थापित करने की। प्रस्तुत इतिहास उसी जरूरत की एक आंशिक, किन्तु उच्चस्तरीय अभिनव पूर्ति है। खरतरगच्छ के इतिहास पर प्रकाश डालने वाले अब तक कुछ प्रयास हुए हैं। हर प्रयास अपने-आप में एक-से-एक अच्छे थे। पर इतिहास और शोध का क्षेत्र विशिष्ट शैली एवं दृष्टि की अपेक्षा रखता है। प्रस्तुत इतिहास के लेखक प० पू० महोपाध्याय श्री चन्द्रप्रभसागर जी खरतरगच्छ के मूर्धन्य विद्वानों में हैं। उन्होंने खरतरगच्छ को 'अवढर दानी' बनकर बहुत कुछ दिया है। उन्होंने इस खन के लिए हमारे साग्रह निवेदन को स्वीकार किया और प्रस्तुत इतिहास को लिखकर उन्होंने खरतरगच्छ के प्रारम्भिक घटनाक्रमों को जो शोधपरक शब्द-शैली दी है, वह हमारी आवश्यकता की अपेक्षित सम्पूर्ति है। महासंघ उनके इस लेखनकार्य के लिए कृतज्ञ है । इतिहास के प्रकाशन मुद्रण में हमें विद्वत्ररत्न श्री भंवरलाल जी नाहटा; समाज-रत्न श्री ज्ञानचन्द जी- लूणाक्त, कलकत्ता; श्री आशकरण जी गुलेछा, V
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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