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________________ विधायाष्टमं सन्नमन्नागनाथस्ततो, वर्धमानाभिधः सूरिरासीत् ॥ १ वर्धमानसूरि पाटण में हुए शास्त्रार्थ में सम्मिलित थे, ऐसे प्रमाण मिलते हैं। आबू तीर्थ का प्रकटीकरण भी वर्धमानसूरि ने किया । इन्होंने ६ मास तक 'सूरि-मंत्र' की साधना की । सूरिमंत्र का शुद्धिकरण भी इन्होंने ही धरणेन्द्र के द्वारा सीमन्धर स्वामी से करवाया था । 'पयडीकयसूरिमन्त' और 'आबु उपरि मास ६ सीम, साधिउ सूरि मन्त्रइ नीम' आदि प्रमाणों का उल्लेख परवर्ती विद्वानों ने किये हैं । इस प्रकार आचार्य वर्धमानसूरि ने चैत्यवास का परित्याग कर आचार· संस्कार किया और एक आदर्श श्रमण जीवन व्यतीत करने लगे, किन्तु उन्होंने चैत्यवास के विरोध में कोई व्यापक कदम उठाया हो ऐसा उल्लेख अनुपलब्ध है । चैत्यवासियों के विरुद्ध आन्दोलन का सूत्रपात जिनेश्वर द्वारा हुआ था। हाँ, जिनेश्वर को इस ओर कदम उठाने में एवं आन्दोलन चलाने में इनका पूर्णरूपेण सान्निध्य एवं सहयोग रहा था । इनका व्यक्तित्व अप्रतिम था । इनके अनेक उद्भट् विद्वान शिष्य हुए, जिनमें आचार्य जिनेश्वर एवं बुद्धिसागरसूरि का नाम उल्लेखनीय है । पाटण का नरेश दुर्लभराज आपका परम भक्त था। श्री वर्धमानसूरि ने राज-सम्मान के साथ शिष्य-समुदाय सहित सम्पूर्ण देश में विचरण किया। उनसे टक्कर लेने का कोई भी साहस न जुटा पाया। जन प्रतिबोध एवं गोत्र - स्थापन आचार्य वर्धमानसूरि की ज्ञान- प्रखरता तथा चारित्र-निष्ठा का धर्मसंघ पर अप्रतिम प्रभाव पड़ा। उनके उपदेशों से अनेक राजवंशीय १ अष्टलक्षार्थी, प्रशस्ति-७ २ द्रष्टव्य - खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली, पृष्ठ-५ ८७
SR No.023258
Book TitleKhartar Gachha Ka Aadikalin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherAkhil Bharatiya Shree Jain S Khartar Gachha Mahasangh
Publication Year1990
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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