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(१६) श्रावक-रत्न नेमिचन्द्र भाण्डागारिक (२०) शासन-प्रभावक आचार्य जिनेश्वरसूरि (२१) जिनशासन-शिरोमणि आचार्य जिनशेखरसूरि ( द्वितीय) (२२) धर्मानुरागी श्रेष्ठि अभयचन्द्र । ___ उक्त ऐतिहासिक पुरुषों में श्रमण एवं श्रावक दोनों ही हैं। यह सूची कालक्रमानुसार है। इनका जीवनवृत्त इतिहास का प्रेरक अध्याय है। इन अमृत-पुरुषों की जीवनी लिखने में मैंने इतिहास और अर्ध-इतिहास की जो भी सामग्री मिलती है, उसका उपयोग किया है। प्रस्तुत है, खरतरगच्छ के आदिकालीन ऐतिहासिक पुरुषों की जीवनी और जीवन की मुख्य गतिविधियां । अमृत-पुरुष आचार्य वर्धमानसूरि
आचार्य वर्धमानसूरि ज्ञानसाधना, योगसाधना और आध्यात्मिक साधना के आदर्श प्रतीक हैं। यह वह विरल विभूति है, जिसने शास्त्रीय मर्यादाओं के अनुरूप उन्नत जीवन जिया और जैन संस्कृति के प्रचार-प्रसार तथा विकास में अनन्य योगदान दिया। आचार्य जिनेश्वरसूरि ने इन्हीं से प्रेरणा प्राप्त कर ज्ञान-संयम की ऊर्ध्वगामी भावना के मोती घर-घर पहुँचाये थे। आचार्य वर्धमान चौरासी जिन मन्दिरों के अधिपति थे, किन्तु अध्यात्मनिष्ठ होने के नाते विशुद्ध चरित्र/क्रिया का पालन करने के लिए उन्होंने उस आधिपत्य का परित्याग कर दिया था।
गुरु-परम्परा
आचार्य वर्धमानसूरि के गुरु आचार्य जिनचन्द्र थे, जो अभोहर देश के चौरासी चैत्यों के अधिपति थे। युगप्रधानाचार्य गुर्वावली के अनुसार वर्धमानसूरि सवाद देश कूर्चपुर में चैत्यवासी आचार्य थे और इनका प्रभुत्व उन सभी मन्दिरों पर था, जिन पर उनके गुरु का