________________
सिरि भूवलय
गाँव बंगलोर-चिक्क बल्लापुर के मार्ग में नंदी रेल्वे स्टेशन के समीप है। इसी गाँव को कुमुदेन्दु का जन्म क्षेत्र कह सकते हैं । फिर भी इस विषय में अभी और परिशोध का कार्य होना शेष है।
अभी हमारे पास उपलब्ध प्रति कुमुदेन्दु के ग्राम यळवळी के लगभग २० मील दूरी में बंगलोर- तुमकूर के बीच दोड्डबेळ नाम के ग्राम वासी सुप्रसिध्द जैन विद्वान मान्य धरणेन्द्र पंडित जी के पास था । उनके वंशज और साथियों से जाँच पडताल के दौरान, आप इस भूवलय को अंकों से पढते थे और उनके प्रिय साथी मान्य चंदा पंडित जी भी इस भूवलय को अंकों से ही पढकर इसमें कहे गए वैद्य, ज्योतिष्य, गणित, लौह शास्त्र, अणुशास्त्र, तत्व शास्त्र, भाषा शास्त्र, के साथ अन्य शास्त्रों का भी, जनता के लिए उपयोगी विषयों की जानकारी देते थे । इस संदर्भ में एक प्रयोग शाला भी बंगलोर में स्थापित कर अपने समय के पंडित मान्यों में से सर्वोत्कृष्ट स्थान में थे। ऐसा कह सकते हैं अभी भी मान्य धरणेन्द्र पंडित जी के वंशी दोड्डबेळे के वासी हैं ।
इस भूवलय ग्रंथ के कारण अपने समय में, सभी से, सभी मतों के विद्वानों से, कीर्ति शिखर पर पहुँचे, श्री पंडित जी से ईर्ष्यावश अनेकों ने कहा कि इस भूवलय को कहीं से लाकर वापस ही नहीं किया है ऐसा अपप्रचार किया । यह विषय मुम्बई मैसूर सरकारों द्वारा परीशीलित होकर यह आरोप निराधार है ऐसा धरणेन्द्र पंडित जी के बंधु मित्रों से और उनके परिचित वृध्दों से हमने जाना है । इस विषय की अधिक जानकारी प्राप्त न होने के कारण बहु जनों से बहु मुखों से कन्नड, हिन्दी, मराठी, गुजराती, अंग्रेजी आदि भारतीय और विदेशी पत्रपत्रिकाओं में वृहद प्रमाण में प्रचारित हो गया । अभी भूवलय के संशोधक मान्य यल्लप्पा शास्त्री जी ने भी मान्य धरणेन्द्र पण्डित जी के विषय में प्रचारित आरोपों को ठीक तरह से परिशोधित न कर उनके मरणोपरांत भी उनके आरोपियों के इन आरोपों को जानबूझ कर अन्जान बन मौनस्य अंगीकार किया है, जो ठीक नहीं है, कहना ही होगा।
धरणेन्द्र पंडित जी का निधन १९९८ में हुआ। इस ग्रंथ को उनके साथ ही अध्ययन करने वाले मित्र श्री चंदा पंडित भी अधिक दिनों तक जीवित नहीं
90