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(सिरि भूवलय)
पिन मने दानसागर मेनिप्प वधूत्तमेयप्प संद से । नन सति मल्लिकब्बे धरित्रयोळार दोरे सद्गुणंगळोळ। श्रीपंचमीयं नोन्तु । धापनेयं माडी बरेसि सिध्दांतमना रूपवति सेनवधु जित । कोप श्री माघनंदी यति पतिगित्तळ।।
इन पद्यों में मल्लिकब्बे का वर्णन किया गया है । मल्लिकब्बे और दानचिंतामणि द्वारा निर्मित प्रतिलिपि अभी हमारे पास उपलब्ध है । इस महा सिध्दांत को पढ कर पढाने वाली मल्लिकब्बे इस सिध्दांत की ज्ञाता थी, ऐसा कह सकते हैं ।
इस ग्रंथ को पढ कर इससे प्रभावित पिरिया पट्टण के देवप्पा ने अपने द्वारा लिखे गए कुमुदेन्दु शतक में
विदित विमल नाना सत कलान सिद्ध मूर्तिह। यलबभू कुमदेन्दो राजवदराजतेजम।।४४।। इमाम यलवले कवमुदीन दुपरशसताम।। कथाम विश रुण वनतिते मानवशाच ॥ सुनय शरेयस मसव खयमश ननतिभदरम। शुभम मन्गलम तवस तुचास याह कथायाह।।१०२।।
पिरिय पट्टण के देवप्पा के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। देवप्पा ऊपर लिखित पद्यों में कुमुदेन्दु मुनि को यलवभू/यलवले कुमुदेन्दु कहकर संबोधित करते हैं। इस तरह देखा जाए तो भूवलय में आपने स्वयं को यलवभू भूवलय संस्कृत प्राकृतादि श्रेणियों में कहे गए पद प्रयोगो में अच्छी तरह ध्यान में रखा होगा, ऐसा जान पडता है अथवा देवप्पा, कुमुदेन्दु के समीप के काल के रहे होंगें, कुमुदेन्दु के दादा-पिता के नामों के साथ उनके जन्म स्थल के विषय में भी जानकार थे,जान पड़ता है। देवप्पा के इस सहायता से और कुमुदेन्दु के कथनों के द्वारा भी, कुमुदेन्दु स्मरण करने वाले यलव नाम का गाँव नंदगिरि के शिखर पर रहा होगा यकीनन कह सकते हैं। इस महात्मा के द्वारा कहा जाने वाला यह
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