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सिरि भूवलय
रहे। तत्पश्चात यह ग्रंथ उनके बच्चों के पास रह गया । वे इस के अध्ययन और परिशीलन के योग्य न थे । धरणेन्द्र पंडित जी के बच्चों को जीवन यापन करना कठिन हो गया। तब वे पंडित जी के सरस्वती भंडार को बेच कर जीवन यापन करने लगे अंत में इस ग्रंथ को भी बेचने वाले थे। इस अंक काव्य भूवलय की प्रख्याति ने अनेकों लोगों के मन को आकर्षित किया था। इस ग्रंथं के प्रशंसकों में श्री यल्लप्पा शास्त्री भी एक थे। वे केवल प्रशंसक ही नहीं पंडित जी के पूर्व बंधुत्व भी थे। विद्या व्यसनी आपने पंडित जी के रिश्तेदारी की चाह कर धरणेन्द्र पंडित जी की छोटे भाई सर्व श्री आदि राज पंडित की बेटी ज्वाला मालिनी से विवाह किया ।
उस समय श्री शास्त्री जी का समय दुर्भाग्य पूर्ण था । धरणेन्द्र पंडित जी का सरस्वती भंडार औने-पौने दामों में बिक रहा था । श्री शास्त्री जी अपने वंशजों से प्राप्त ग्रंथों के साथ अपने सभी प्रयत्नों से अधिकतर कोरी कागज़( हाथ से बना मोटा और खुरदुरा कागज़) और अन्य रीति के बहु ग्रंथों को संग्रहित कर स्वयं का ललित नेमि सरस्वती भवन की स्थापना की थी। यह भवन कर्नाटक कवि चरित्रे(इतीहास) के रचयिता पूज्य सर्व श्री आर. नरसिम्हाचार्य के धन्यवाद का भी पात्र बना । इस प्रकार इसकी व्याप्ति कैसी होगी कहना आवश्यक नहीं है। इस समय तक शास्त्र ग्रंथ भूवलय भी बिकने को तैयार था । मल्लिकब्बे की भाँति ही, शास्त्र प्रेम मायके की मान बिन्दु की रक्षा हेतु इस भूवलय को (इनको ग्रंथ का नाम भी ज्ञात नहीं था) इसी वंश के होने के कारण, उन्हें ही यह ग्रंथ प्राप्त हो ऐसा श्रीमती ज्वाला मालिनी ने पति यल्लप्पा शास्त्री जी से आग्रह किया। निर्धनता की आग में जलते हुए धरणेन्द्र पंडित जी के बच्चों को इस ग्रंथ को बिना मूल्य के ही अपनी बहन को देने में भी मुश्किल हुई परन्तु ज्वाला मालिनी के पास संपत्ति के रूप में केवल एक जोडी सोने के कंगन ही थे उसके सिवा और कुछ नहीं था। जैन बहनें समय-समय से रक्षित करती आई हुई इस ग्रंथ को श्रीमती ज्वाला मालिनी ने अपनी सर्वस्य संपत्ति के रूप में एक जोडी कंगन को देकर इस अंक राशी को खरीद लिया । यह स्त्री धन के रूप में अब शास्त्री जी के पास है । यह ग्रंथ की नई और पुरानी कहानी है । दान चिंता मणी अत्ती मब्बे के भाँति, सेन की पत्नी मल्लिकब्बे की भाँति सामर्थ्य न होने पर भी
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