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सिरि भूवलय -
नापाए
ऐळ्नूरर भाषे । बळसिरि महा हदिनेंटु ॥९-१९।। १८ महा भाषाएँ वशवाद काटकदेण्टु भागद । रस भंगदक्षरद सर्व ॥ रसभावगळनेल्लव कूडलु बंदु। वशवेळनूर हदिनेंटु भाषे ॥११-१७२।। कर्नाटक नाम के भाग में रसभंग अक्षर के सर्व रस भागों को मिलाकर मिलने वाले ७१८ भाषाएँ।
इस प्रकार से ७१८ भाषाओं से युक्त सरल और प्रौढ दोंनों रीतियों में कुमुदेन्दु ने इस विश्व काव्य को रचा है। आपने कन्नड के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहा है।
णुणुपाद दुण्डाद लिपिय कर्माटक । दनुपम रळकुळवेरसी।। मनुजर देवर जीवराशिय शब्द। दनुपम प्राकृत दृविड। चिकनी और गोल सुन्दर लिपि कन्नड की है ।
अर्थात कन्नड की लिपि चिकनी और गोल अनुपम लिपि है।
० इस प्रकार के चिकने और गोल बिन्दु को तोड कर सुन्दर अंकों को रचकर उसकी सुन्दरता में बिना कोई बाधा डालें उन अंकों में ही अक्षरों को छिपा कर अपनी ही एक विशेष रीति को प्रदर्शित किया जिसे विश्व में न इससे पहले और न इसके बाद कोई प्रदर्शित कर सकता है। आपकी इस सर्वभाषा मयी भाषा को आपकी ही एक भाषा कह कर परिभाषित करना होगा।
कुमुदेन्दु कहते हैं
विषहर “सर्वभाषामयी कर्माट"। दसमान सूत्रार्थ ॥१०-७०॥ विषहर सर्वभाषामयी कर्नाटक समान सूत्रार्थ खोडीकर्मव गेल्व हाडनु हाडिद । रूढियु हळेय कम्मडवा।।
१०-७५॥