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-(सिरि भूवलय
तुच्छ कर्मों पर जय प्राप्त करने के लिए प्राचीन कन्नाद में गीतों को गाया। परमं पेळिद हदिनेंटु मातिन । सरसद ई लिपि नवम ॥५-७९॥ यह नवम परम के द्वारा कहेनुसार १८ बातों (भाषा)की यह सरस लिपि है। वर “सर्वभाषा मयी भाषा” एन्नुव । अरहंत भाषित वाक्यं ॥१५१२२॥ अरहंत भाषित “सर्वभाषामयी" काव्य ।
इस प्रकार अपने काव्य भाषा को सर्वभाषा मयी कर्माट कहते हैं । इसमें समाहित नए-पुराने कम्मडों को मिलाकर बाँधा है, कहते हैं । कुमुदेन्दु इस संयुक्त भाषा को इस प्रकार विभाजित करते हैं
“अथवा संस्कृत, मागध, पिशाच, भाषाश्च, शूरसेनी च, भेदो देश विशेषादपभ्रंशः” (५-९५-९६)। इस भाषाओं को तीन से गुणा करें तो १८ बनेगा “कर्नाट, मागध, मालवा, लाट, गौड, गुर्जर, प्रत्येकर्त यमित्या दशमहाभाषा" कहकर निरूपित करते हैं और
सर्वभाषामयी भाषा, विश्व विद्याव भासिने, त्रिषष्टि : चतुः षष्टिा, वर्णाः शुभमते, माताः प्राकृते, संस्कृतेचापि, स्वयं, प्रोक्ताः,स्वयंभुवा-अकारादि, हकारांतां, शुध्दां, मुक्ताआआआआआआआआअवलिमिव, स्वर, व्यंजनभेदेन, द्विधा, भेदमुपैयुषि,अयोगवाह पर्यंतां, सर्वविद्या सुसंगतां, अयोगाक्षर संभूति, नैकबीजाक्षर चिश्तां, समवादि दधत, ब्राह्मीमेधाविन्यतिसुन्दरी- सुन्दरीगणितं, स्थानं, क्रमैहि, सम्य गधास्यत, ततो भगवतो, वक्तानिः सहताक्षरावलिं नम इति –व्यक्त सुमंगलां सिध्दमातृकां, स भूवलय ५-१२२-१४५।
इस संस्कृत गद्य में कुमुदेन्दु अपने सर्वभाषामयी भाषाओं की रूप रेखाओं को विस्तृत रूप से निरूपित करते हैं और इस अंक लिपि में १८ प्रकार के नाम कहते हैं १. ब्राह्मी २.यवन, ३.उपरिका ४. वराटिका ५. वजीकसाविका ६. प्रभारात्रिका ७. इच्छतारिका ८. पुस्तिका ९. भोगयवत्ता १०. वेदनतिका ११. निहतिका १२. अंक १३. गणित, १४. गंधर्व १५. आदर्श १६. महेश्वरी १७. दामा
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