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________________ सिरि भूवलय यशस्व की अंक लिपि की ७०० भाषा अंक संकेत निपुण के द्वारा उस उस भाषा के अक्षर बन भाषामय बन कर उपदेश बनेंगें। इस तरह कन्नड के आदि परंपरा को गणित पध्दति के अनुसार इस अंकाक्षर भाषा को अपने परंपरा गणिताक्षर के शक्ति से समस्त भाषाओं को समाहित करने की शक्ति है ऐसा सूचित करते हैं। इसे ही कुमुदेन्दु इस तरह कहते हैं सुर नागेन्द्र तिरियंच नारक। ररीयुवेल्नरंबक्षर । बर भाषए हदिनेंटु बेरेसीनांबरेदिह। गुरुवीरसेन सम्मतदि।।१०-२७ गुरु वीर सेन की सम्मति से, सुर, नर, नागेन्द्र सभी के समझ में आनेवाला ७०० भाषाओं के साथ १८ भाषा को मैंनें मिलाकर लिखा है । मोक्षमार्गोपदेशक वादेलोंदेन्टु। साक्षर अक्षरद तुहिन।। रक्षेय जगद समस्त भाषेगलिह। शिक्षेये भव्यद वस्तु॥ १०-४६ मोक्षमार्ग का उपदेश करने वाले सात और एक आठ भाषाओं के अक्षरों के हिम रक्षा में जग के समस्त भाषाओं को समाहित करने वाली भव्य वस्तु। अंकाक्षर पध्दति की भाषा कन्नड होकर जगत की भाषा के लिए जननी बनकर अपने आँचल में स्थान देती है। अपने इस भूवलय काव्य में संस्कृत प्राकृत कन्नड की जंजीर में अन्य भाषाओं को बाँधा जा सकता है। बहु सुगंध पुष्प हार जैसे परिमल रसायन के समान सभी भाषा के पुष्प द्रव्यों को कन्नड के धागे में पिरोकर बाँधा जा सकता है इसे कुमुदेन्दु ऐसा कहते हैं । इस काव्य में ७१८ भाषायें समाहित है धर्मभाषेगळेंटोंदेलु ॥१-८८।। धर्मभाषा सात और एक आठ। अरीवु ऐळ्नूर हदिनेण्टु ॥३-१४९॥ परमभाषे गळेल्लविरुव ।३-१५० समझ में आए तो ७१८ भाषाएँ हैं
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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