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सिरि भूवलय
राग वैराग्य को एक साथ एक ही समय में कर्नाटक के दरवाजे के द्वारा बहाया श्री गुरु वर्धमांक ।
सर्वज्ञ देवनु सर्वांगदिं पेळद । सर्वस्व भाषेय सरणि ॥६- २ सकलवु कर्माटदणुरूप होंदुत । प्रकटदे ओंदरोळ अडगि ॥६- ३ सर्वज्ञ देव ने सर्वांग से सर्वस्य भाषा की सरणी को कहा। कन्नड में समस्त अणुरूप से समाहित है।
हदिनेंटु भाषेयु महाभाषेयागलु । बदिय भाषे गळेळु नूरं । हृदयदोळडगिसि कर्माटलिपियागी । हुदुगिसिदंक भूवलय ।। ६-४
१८ महाभाषा और ७०० लघु भाषाओं को कर्नाटक लिपि ने अपने हृदय में समाहित करने वाला यह अंक काव्य भूवलय है
यशस्वतिदेवीय मगळदेळनूरू। पशुदेवनारक भाषे ।। ६-३२ नवदंकद ई भाषेगळेल्लवु । अवतरिसिद कर्माट ॥ ६-३३ यशस्वती देवी की पुत्रियों के द्वारा समझा गया यह ७०० पशुदेवनारक की
भाषा ।
नवमांक की ये भाषाएँ कन्नड में अवतरित हुई है।
घनकर्माटदादियोळ बहभाषे । विनयत्व वळवडिसिहुदु॥६-३४ वरदवागिसि अतिसरलवनागिसि । गुरु गौतमरिंदा हरिसि । । ७ - १२३ घन कर्नाटक में प्रारंभ से बहु भाषाएँ विनय पूर्वक से है। विशेष रूप से सरल रूप से गुरु गौतम द्वारा आगे बढा है।
लिपियु कर्माटक वागले बेकेंब | सुपवित्र दारिय तोरी । । ७ - १२४ रक्षिसिकूडलुसमनागिरुवुदु । रक्षेय हदिनेंदु भाषे । । ९ - २८
लिपि कर्नाटक की होनी चाहिए सुपवित्र मार्ग को दिखाया है। १८ रक्षित भाषाएँ समान हैं।
यशद लिपियंक क्षुद्र ऐकनूरंक वश्संज्ञरिं आवाव ॥ यशदंकाक्षर अक्षभाषाय । वशभव्य गुर्पदेशविव ॥ ९ - २९
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