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सिरि भूवलय
कुमुदेन्दु मुनि के माता-पिता और दादा का परिचय देना है। इस प्रकार कुमुदेन्दु के दादा वासु पूज्य और पिता उदय चंद्र हैं ऐसा कह सकते हैं। उससे अधिक हमें कवि के विषय में और जानकारी नहीं है।
कुमुदेन्दु के समय का परिचय प्राप्त करने के लिए अभी प्राप्त साधनों को इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है
१. कुमुदेन्दु के द्वारा कहे गए पूर्व पुरुषों और कवियों का समय २. कुमुदेन्दु के समकालीन महिमास्पद व्यक्ति
३. समकालीन राजा महाराजा
कुमुदेन्दु से पूर्व पहले धरसेन, भूत बलि, पुष्प दंत नाग हस्ती, आर्य मयंञक्ष, कुन्दकुन्दादि, और इस ग्रंथ में अन्य रीति से आए हुए शिव कोटि, शिवायन, शिवाचार्य, पूज्य पाद, नागार्जुन, आदि आठवीं सदी के पहले के हैं । ग्रंथों के उपलब्ध न होने पर भी संस्कृत - प्राकृत - कन्नड में लिखने वाले धरसेनचार्य, इसी को भूवलय के रूप में लिखने वाले भूत बलि आदि सर्व भाषा मयी कन्नड के कवि हैं। विश्व सेनाचार्य नाम के द्वितीय गणधर के पाहुड काव्य भी इसी तरह अक्षरांक में लिखा गया होगा ऐसा मानना ठीक होगा तो कुमदेन्दु की भांति उन्हें भी एक आदि कन्नड कवि कहने में कोई बाधा नहीं है।
कुमुदेन्दु के शिष्य अमोघ वर्ष अपने कविराज मार्ग में प्रसिध्द कन्नड गद्य कवियों में
विमलोदय नागार्जुन समेत, जय बंधु दुर्वीनीतादि
क्रमदोळने गच्छे गद्य, । श्रम पद गुरता प्रतीतियं कै कोण्डर गळ अथात विमलोदय नागार्जुन जयबंध दुविर्नीतादि ने इस क्रम में गद्य क्रम में गुरु के मार्ग का अनुसरण किया है।
इन कवियों में विमल, उदय, नागार्जुन, जयबंधु, दुर्वीनीत आदि में नागार्जुन के “कक्ष पुट तंत्र" को पहचान कर नागार्जुन, नागार्जुन का कक्ष पुट तंत्र प्रथम कन्नड गद्य था, इसे पूर्व से संस्कृत में परिवर्तित किया गया होगा ऐसा कहने का कारण बनता है। दुर्वीनीत का शासन इतिहास उपलब्ध है। विमल जय बंधु
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