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(सिरि भूवलय
अर्थात देवप्पा इसी भूवलय के कुमुदेन्दु को “देशी गण, नंदि संघ, कुन्दकुन्दान्वय" कहकर संबोधित करते हैं। नव गण गच्छ को प्रसारित करने वाले यही होने के कारण सेन गण में एक देशी गण देवप्पा के समय प्रस्फुटित हुआ होगा। नहीं तो दोनों नाम एक ही के हो सकते हैं। आज भी सेन गण के कन्नड जैन कुन्दकुन्द के ही अनुयायी हैं, यह शोधनीय है।
भूवलय के कमुदेन्द्र गंगारस के उपाधि वाले ग्राम के होने के कारण "कोलवल तले काचड नंद गिरी” को विश्व के जैन मत के पवित्र पर्वतों से पहले वर्णित करते हैं। इस तरह के वर्णन में उनके सभी भाव नंदी में ओत-प्रोत हैं उनके शब्दों में कहना होगा तो:
इह के नंदियु लोक पूज्य ॥८-५५॥ महति महावीर नंदि ॥८-५८॥ इह लोकदादिय गिरिय ॥८-५९॥सुहुमांक गणितद बेट्टा ॥८६०॥ नंदी भूमि पर लोक पूज्य है। इह लोक में आदि गिरि एक अंकगणित का पर्वत है। महसीदु महावत भरत ॥६१॥ वहिसी दनुव्रत नंदी ॥७२॥ सहनेय गुरुगळ बेट्टा ॥७३॥ सहचर मूरारुमूरु ॥७४॥ महत्त्वपूर्ण महाव्रत को लेने वाले नंदी का अणुव्रत सहन शीलता का पर्वत बना है जिनके अनेक सहचर हैं।
आप गंगराज के स्थापक सिंह नंदी के द्वारा शक सं-१ में (सन् ७८) में स्थापित प्रथम राजधानी में नंदी गिरि हो सकते हैं । इसी सिंह नंदी के वंशज भी हो सकते हैं । इस परंपरा का एक जैन मठ सिंहन गद्दे में है। जहाँ भी सेन गण के अनुयायी हैं उन सभी के लिए यही धर्म क्षेत्र है। इस दिशा में परिशोधन हो तो यह विषय स्पष्ट होगा ऐसी आशा करते हैं। इन संगतियों (विवरण) पर विचार किया जाए तो पिरीय पट्टण के देवप्पा द्वारा दिए गए विवरणों को गलत नहीं कहा जा सकता।
भूवलय को विशेष रीति से समझे हुए देवप्पा का जनता के प्रति उपकार यह है कि विश्व का दसवाँ आश्चर्य बना यह सर्व भाषामयी कन्नड काव्य के कर्ता
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