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________________ (सिरि भूवलय के काव्य और उनके विषय में विवरण प्राप्त नहीं है परन्तु नृपतुंग अमोघ वर्ष के ग्रंथ में आने वाले कन्नड गद्य कवि पिरीय पट्टण के देवप्पा द्वारा कहे कुमुदेन्दु के पिता उदय चंद्र ही उदय हैं ऐसा कहें तो गलत नहीं होगा और भूवलय में आने वाले पूज्य पाद, कल्याण कारक के रचनाकार हैं ऐसा स्पष्ट उल्लेख मिलता है। ये सभी कुमुदेन्दु से पूर्व कवि हैं। इनका समय सन १ से ६०० तक हैं उसके बाद नहीं हैं। हमारी जानकारी के अनुसार, कुमुदेन्दु मंगल प्राभृत पूर्वे काव्य करण सूत्र आदि ग्रंथों का जिक्र भी करते हैं जिनके विषय में जानकारी स्पष्ट नहीं है। और न ही हमने इन ग्रंथो को देखा है। हमारी जानकारी के अनुसार कुमुदेन्दु के द्वारा कहे गए कवियों में से प्रसिध्द कवि वाल्मिकि ही एक ज्ञात कवि हैं। इस संदर्भ में (कवि वाल्मिकी को भोजन खिलाते हुए)शुध्द रामायण दंक के वाल्मिकी का नाम उठाया है। इन कवियों के विषय में, इनके समय के विषय में किसी भी परिणाम पर पहुंचने पर भी, ये सभी छठवीं सदी के बाद के नहीं है ऐसा यकीनन कह सकते हैं। अमोघ वर्ष के सभा में वाद-विवाद कर शिव पार्वतीश गणित को कहकर चरक वैद्य को खंडित किया है, कुमुदेन्द द्वारा कहे अस्पष्ट रीति में स्थितसमंत भद्र के विषय में कुछ भी निश्चित रूप से कहा नहीं जा सकता। इस चर्चा का सारांश यह है कि कुमुदेन्दु के द्वारा कहे व्यक्ति छठवीं सदी के बाद के नहीं हैं ऐसा सिध्द होता है। कुमुदेन्दु के समकालीन व्यक्तियों में से एक वीर सेनाचार्य और दूसरे जिनसेनाचार्य हैं । वीर सेनाचार्य के द्वारा धवल, जय धवल, महाधवल आदि धवलों की व्याख्या के गई है। उसमें वर्ष का उल्लेख न होने पर भी आप महापुरुष अथवा पूर्वे पुराण के कर्ता जिनसेन के गुरु होने के कारण, जिनसेनाचार्य ने सन् ७८३ में ग्रंथ के रचयेता होने के कारण वीर सेन जी उस समय के कहे जा सकते हैं। जिन सेन और वीर सेन सन् ७८३ में रहे होंगें ऐसा यकीनन कहा जा सकता है। इनके शिष्य कुमुदेन्दु भी सन् ७८३ के लगभग के ही होंगें ऐसा कह सकते हैं। 62
SR No.023254
Book TitleSiri Bhuvalay Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSwarna Jyoti
PublisherPustak Shakti Prakashan
Publication Year2007
Total Pages504
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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