________________
( सिरि भूवलय
प्रथम परिष्करण की प्रस्तावना
कवि और समय काल
सिरी भूवलय ग्रंथ के रचनाकार कवि का नाम कुमुदेन्दु है। आप अपने नाम के अंत में गुरु, मुनि के उपनाम को जोड़ते हैं। इस नाम के एक कवि ने रामायण की रचना. भी की है। रामायण के कुमुदेन्दु सन् १२७५ में माघनंदी सिध्दांत चक्रेश्वर के शिष्य थे। यह एक महत्वपूर्ण विषय है कि इनके और सिरी भूवलय के कुमुदेन्द्र के बीच कोई संबंध नहीं है। सर्व भाषामयी काव्य सिरि भूवलय के रचनाकार कुमुदेन्दु मुनि को किसी भी प्राचीन अर्वाचीन कवियों ने उल्लेख किया हो ऐसा जान नहीं पड़ता है। शायद् आज तक प्रकाश में न आने वाला श्री पिरीराज पट्टन के देवप्पा द्वारा रचित संस्कृत कन्नड पद्यों वाला कुमुदेन्दु शतक ही हमें कवि के अस्तित्व की जानकारी प्राप्त कराने में सहायक है। देवप्पा और कुमुदेन्दु शतक कविमाला और काव्य माला में आज तक अज्ञात ही रहा है यही इसकी ख़ास विशेषता है। इस कुमुदेन्दु ने अपने सिरि भूवलय में चरित्रात्मक संगतियों (एतिहासिक) के विवरणों को और पिरिया पटन के देवप्पा द्वारा रचित कुमुदेन्दु शतक में दिए गए कुछ विवरणों को मिलाकर विस्तार पूर्वक न होने पर भी चरित्र(इतिहास) के लिए आवश्यक तथ्यों को नीचे लिखा गया है..
कुमुदेन्दु ने गुरु अथवा मुनि होने के पश्चात इस विश्व काव्य की रचना के कारण शायद सांप्रदायिकता के कारण अपने माता-पिता के नामों का उल्लेख नहीं किया है। फिर भी अपनी मुनि पदवी में रहते हुए प्राप्त अपने पूर्व तथ्यों को कुछ इस प्रकार कहते हैं
ओदिसिदेनु कर्माटद जनरिगे। श्री दिव्य वाणिय क्रम दे।। श्री दया धर्म समन्वय गणितद। मोदद कथेय नाली पुदु।।
कर्नाटक की जनता को गणित में दया धर्म समन्वय का श्री दिव्य वाणि की कथा को पढाता हूँ सभी सुनें। अर्थात कन्नड की जनता को यह कहें कि ..