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सिरि भूवलय
वरदा मंगलद प्राभृतद महाकाव्य । सरणीयोल गुरु वीर सेना ।। गुरुगळ मतिज्ञान दरिविगे सिलुकिह । अरहंत केवल ज्ञान ॥ मंगलकर प्राकृत का महाकव्य वीरसेन गुरु के ज्ञान की जानकारी रखने वाले अरहंत केवली ज्ञान वाले हैं ।
जनिसलु सिरी वीर सेनर शिष्यन। घनवाद काव्यद कथेय ।। जिनसेन गुरुगळ (तनुविन जनमद । घन पुण्य वर्धन वस्तु) ।
श्री वीरसेन शिष्य का यह घन काव्य कथा जिनसेन गुरुओं के जन्म का पुण्य वर्धन वस्तु है।
नाना जनपद वेल्लदरोळ धर्म । तानु क्षिणिसी बर्पाग ॥
तानल्ली मान्य खेटद दोरे जिनभक्ति । तानु अमोघवर्षांक ।।
समाज में धर्म के क्षीण होने के समय में मान्यखेट के राजा जिनभक्त अमोधवर्षांक । इसके आगे ये कहते है
अवर पालिसुवा सद्गुरुवू । सुविशाल कीर्तिय् देह || नवनवोदित शुध्द जयद । अवतार दाशावसनीय ॥ भूवि कीर्तिय सेन गणदी । अवतरिसिद ज्ञात वंशी ।। अवन गोत्रवदु सदधर्म । अवन सूत्रवू श्री वृषभ ॥ अवन शाखेवू द्रव्यांग । अवन वंशवदु इक्षवाकु ॥ अवनेल्ला त्यजिसिद सेना । नवगण गच्छव सारी ।।
उनका धर्म सद्गुरु धर्म है सुविशाल कीर्ति है उन्होंनें ज्ञात वंश में जन्म लिया उनका गोत्रसद्धर्म उनका सूत्र श्री वृषभ उनकी शाखाद्रव्यांग इक्ष्वाकु वंश है उसने सभी का त्याग कर सेनगणागच्छ को अपना लिया ।
नव भारतदोळु हसिसी । सविय करमाटक दौरेगे ।। विवरण दोळु कर्मव पेळ्द । अवनंक काव्य भूवलय भुवन विख्यात भूवलय ॥
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