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सिरि भूवलय
बदलाव रहित बेरलच्चु यंत्र की रचना करने वाले श्री अनंत सुब्बाराव जी से कुछ जानकारी प्राप्त हो सकती है, ऐसा सोच कर मैसूर आकर उनसे मुलाकात की। काल क्रम में श्री यल्लप्पा शास्त्री जी को चक्रबंध के विषय में ज्ञानोदय हुआ । अनंत सुब्बाराव जी को पत्रिकाद्योम में कार्य करने के बजाय लोकोपयोगी सिरि भूवलय की सेवा करना ही उचित लगा । इसी समय पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी भूवलय की हिन्दी व्याख्यान लिखवाने दिल्ली प्रवास पर थे परन्तु दुर्भाग्य पूर्वक बीमारी की वज़ह से अनिरिक्षित रूप से स्वर्गवासी हुए । तब भूवलय के सभी कार्य अस्त व्यस्त हो उठे। आपने बच्चों में धैर्य भर कर भूवलय को टाइप करवाकर भारत सरकार को सौंपने का बीडा उठाया। काल क्रम में भूवलय के संशोधकों में जीवित एक विद्वान श्री कलमंगलं श्रीकंठैय्या जी के स्वर्गवास होने के कारण भूवलय के आगे के संशोधक कार्य स्थगित हुए। फिर भी उपलब्ध मुद्रित ग्रंथ को ही सही, कन्नड की जनता सही उपयोग कर सके, यह मान कर श्री अनंत सुब्बाराव जी ने अपने भ्रमण के प्रत्येक क्षेत्र में उसका प्रचार-प्रसार किया।
“ऐसे महा ग्रंथ को कन्नड भाषा-भाषी अभी तक ठीक से समझ क्यों नहीं पाए हैं, इस एक ग्रंथ से कन्नडीगा कभी भी दरिद्रता का सामना ही नहीं करते” ऐसी व्याकुलता श्री अनंत सुब्बाराय जी को थी । सर्व भाषा मयी सिरि भूवलय में धर्म के विषय में निहित उल्लेखों को समझ उन्हें कार्य रूप में परिणित करने का प्रयत्न करें तो सारा जग जिस धार्मिक उथल-पुथल से त्रस्त है उससे मुक्ि अवश्य प्राप्त हो सकती है, ऐसा आपका विचार था ।
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एम.वाय धर्मपाल मैनेजिंग ट्रस्टी सिरि भूवलय फ़ाउन्डेशन (रि)