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( सिरि भूवलय
और किसी भी यंत्र रचना के विषय में आसक्ति रखते थे। कन्नड लोयर सेकेंडरी की परीक्षा में सर्वाधिक अंको को प्राप्त कर इंग्लिश लोयर सेकेंडरी परीक्षा मेंभी उत्तीर्ण हुए। विद्यार्थी दशा में ही आप को शाला के पाठ्य प्रवचन के साथ खेल-कूद नाटक-साहित्य आदि क्षत्रों में भी आसक्ति थी। उसी समय शिवमोगा में अप्पर सेकेंडरी में अध्ययन के समय शाला वार्षिकोत्सव में नाटक अभिनय भी आप के कार्य कलापों में शामिल हआ। शाला के उपाध्याय वर्ग और अधिकारी वर्ग तथा विद्यार्थी वर्ग से नाटक अभिनय के लिए प्राप्त प्रशंसा श्री अनंत सुब्बाराय जी को चिरस्मरणीय रहा। १९२५ में कन्नड अप्पर सेकेंडरी में उत्तीर्ण हए। इसी काल में महात्मा गाँधी जी के प्रतिदिन के भाषणों में निहित जीवन क्रमो के मार्गदर्शन से अत्यधिक प्रभावित हुए।
आपने उपाध्याय वति से अपना जीवन प्रारंभ किया। आप कन्नड शीघ्र लिपि तथा कन्नड बेरलच्चु यंत्र ( कन्नड में शार्ट हैंड और टायपिंग ) के अविष्कार में आसक्त होकर श्रम साध्य हुए। महात्मा गाँधी जी के उपदेशों से प्रभावित होकर देश सेवा की चाह ने आपने उपाध्याय वृति से त्याग पत्र देकर पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश किया। पत्रिकाद्योम में आपकी सफलता में स्वतः संशोधित कन्नड शीघ्र लिपि और कन्नड बेरलच्चु यंत्र का प्रमुख स्थान है। ___ कन्नड बेरलच्चु यंत्र की रचना का प्रयत्न अनंत सुब्बाराव जी के द्वारा फल प्रद होने पर भी असुए (जलन) से ग्रस्त विद्वानों और जातिवादियों के कारण, स्वार्थ परक अधिकारियों के कारण अनाव्यश्यक रूप से विवाद का कारण बन तथा कुतंत्र के परिणाम स्वरूप ३० वर्षों तक वह अज्ञात ही रहा। अंततः सर्वस्व त्याग कर बलिदान करने से भी पीछे न हटने की स्थिति तक आपके पहुंचने पर अनिवार्य रूप से आपके प्रयत्न को सरकार ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार कर उसे मान्यता प्रदान की।
इसी अवधि में अनंत सुब्बाराव जी के सक्रिय रूप से भाग लेकर सेवा प्रदान करने का क्षेत्र सिरि भूवलय का है।
अनेक वर्षों के पूर्व पंडित यल्लप्पा शास्त्री जी इन चक्र बंध के परिशोध में तल्लीन रहने के समय, इस विचार के लिए, कन्नड लिपि के लिए, लिपि के