________________
सिरि भूवलय
ही है। आपकी लेखनी बहुतेरे लोगों की समझ से बाहर है। समझ में आ भी जाए तो बहुतेरों की रूचि का नहीं है। इसके कारण ही शायद आपके अभिप्राय विवाद के कारण बनें। कन्नड के हित चिंतक के रूप में आपने जीवन बिताया। आपने १९६५ मार्च ११ को नश्वर शरीर छोड दिया।
के. अनंत सुब्बाराव
कन्नड बेरलच्चु (टाइप राइटर) के निर्मापक श्री के. अनंत सुब्बाराय जी हासन ताल्लुक के अनुगनहाल ग्राम के निवासी थे। आप उपाध्याय, शिक्षण तज्ञ, संशोधक, यंत्रज्ञ, स्वराज सेनानी, पत्रिकाद्योगी, छाया चित्रकार के साथ जीवन के अनेक क्षत्रों में अपार कष्टों को सह कर असेतु हिमालय पर्यंत प्रवासी यात्री थे। कन्नड्भाषा के संरक्षण और प्रचार प्रसार की दिशा में अत्यगत होने वाली शीघ्र लिपि और बेरलच्चु यंत्र (टाइपराइटर) के संशोधक कन्नड भाषा के जीवित रहने तक आप भुलाए नहीं जा सकते।
आप हासन ताल्लुक के अनुगनहाल ग्राम के श्री केशवैय्या दंपत्ति के पुत्र थे।चार वर्ष की अल्पायु में ही आपने पितृ वियोग को सहा । ससुराल का आश्रय न पाकर माता सावित्रिम्मा जी अपने स्वयं और बच्चों के लालन-पालन के हेतु जोडी कृष्णापुर ग्राम में स्थित उनकी बडी बहन श्रीमती लक्ष्मी देवम्मा के आश्रित हुई। तत्पश्चात हन्दन हाल ग्राम में अनंत सुब्बाराय जी की प्राथमिक शिक्षा यशस्वी रूप से समाप्त हुई। उस समय तक माता सावित्रिम्मा के मन में स्वतंत्र जीवन यापन की चाह उत्पन्न होने के कारण आप सब पुनः हासन लौट आए।
वारान्ना (कर्नाटक के ग्रामों में यह पध्दति प्रचलित थी कि ग्राम में प्रत्येक घर से विद्यार्थियों को हर हफ़्ते का एक दिन का भोजन बारी-बारी से उपलब्ध कराया जाता था) के कारण पेट की समस्या का परिहार मिलने पर आप ने हासन में ही माध्यमिक शिक्षा को आगे बढाया। आप के जीवन में अल्प तृप्ति और श्रम सहिष्णुता आप का स्वभाव रहा साथ ही विद्या अभ्यास के विचार में भी प्रतिभा और उत्साह भरा था। प्राथमिक विद्या अभ्यास के काल से ही आप को कन्नड भाषा के प्रति अपारासक्ति थी। आप अपने बाल्य काल से ही वैज्ञानिक प्रयोग
53